छोटेसे घरों में सपने...
पहिल्यांदा हिंदीत कविता लिहिली आहे.
व्याकरणात काही चुका असल्यास नक्की सांगा.
छोटेसे घरों में सपने ...
छोटेसे घरों में सपने अक्सर ही बडे होते है !
कुछ करके ही मानेंगे इस जिद पे अडे होते है !
आजादी के दिन झंडे हम उँचे तो रखते है ,
क्यों अगले दिन देखो तो रस्ते पे पडे होते है !
जल्दी में खरीद ना लेना ये दिल भी फलों के जैसा ,
जो उपरसे चमकिले अंदरसे सडे होते है !
अब झूठ के दर पर ही है भीड दिखाई पडती ,
सब सच के रस्ते पर क्यों मुश्किल से खडे होते है !