खूब लडी मर्दानी!
अमितदादा/असुदे यांनी हैद्राबाद बीबीवर ही धीरगंभीर, वीरश्री चेतवणारी सुंदर कविता टाकली. याबद्दल बरंच लिहायचय, पण सध्या फक्त ही कविता-
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी...झाँसी की रानी
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,