पूर्णकाम !

Submitted by पुरंदरे शशांक on 2 November, 2014 - 22:33

पूर्णकाम !

नामाचा गजर | विठ्ठल विठ्ठल |
सुखचि केवळ | तुकयासी ||

हाकारी सदैव | विठू धाव आता |
पातला तो स्वतः | देहूग्रामी ||

का रे आरंभिला | नामाचा गजर |
रात्रंदिन थोर | सांगे मज ||

काय उणे तुज | काय देऊ बोल |
देव उताविळ | पुसतसे ||

तुका हासतसे | विठ्ठलाच्या बोला |
म्हणे जीव धाला | तुझ्या नामे ||

आता काही नसे | संसारी मागणे |
एक तेही उणे | असेचिना ||

अवघा भरला | तूच जळी स्थळी |
उणीव वेगळी | काय सांगो ||

तुकयाच्या मुखे | अमृताची बोली |
स्वये ती चाखली | विठ्ठलाने ||

जागोजागी जन | मागताती काही |
विरळाचि पाही | तुकोबा तू ||

न मागे काहीच | ऐसा पूर्णकाम |
पावलो विश्राम | स्वभावे मी ||

विठ्ठल सुखावे | ऐशा तृप्त भावे |
पूर्णता स्वभावे | तुक्या ठायी ||

पूर्ण ब्रह्म स्वये | प्रत्यक्ष प्रगटे |
पूर्णता जे देते | भ्रांतासही ||

ज्यासी वाटे ऐसी | पावावी पूर्णता |
टेकावा तो माथा | तुका पायी ||
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वा, फारच छान रे Happy
>>>तुकयाच्या मुखे | अमृताची बोली |
स्वये ती चाखली | विठ्ठलाने ||

जागोजागी जन | मागताती काही |
विरळाचि पाही | तुकोबा तू ||<<< हे फारच भिडले, जिओ

अप्रतिम .

न मागे काहीच | ऐसा पूर्णकाम |
पावलो विश्राम | स्वभावे मी ||
या ओळी फारच आवडल्या . Happy

विठ्ठल सुखावे | ऐशा तृप्त भावे |...
वा वा.
अगदी देवानं मागून घ्यावा असा भक्तं चितारलास की... जियो, शशांक.