Submitted by पुरंदरे शशांक on 27 June, 2016 - 23:43
संतांचे उपकार
भक्तासाठी देव | होतसे प्रगट | येरा तो अदृष्ट | आकळेना ||
भाव ऐसा थोर | देवापायी नित्य | जीवभाव सत्य | लुप्त होई ||
आठविता चित्ती | एकमात्र हरि | लौकिक विसरी | पूर्णपणे ||
वेड लागे देवा | भक्ताचेच पूर्ण | सांडिले निर्गुण | अरुपत्व ||
ठाकतसे उभा | भक्ताचे ह्रदयी | निर्गुण सामायी | सगुणत्वे ||
आकळावे वाटे | कोणासी श्रीहरि | अभंग उच्चारी | सप्रेमाने ||
ज्ञानेश्वरी गाथा | मनन - चिंतन | स्वये नारायण | दृष्य होई ||
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शशांकजी, अप्रतिम !!! _/\_
शशांकजी, अप्रतिम !!! _/\_
अप्रतिम! क्षणभर मला | विचार
अप्रतिम!
क्षणभर मला | विचार पडला | कोणा संताच्या | ओव्या ह्या |
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