लोकं आणि शहरं
Submitted by श्रिया सामंत on 16 November, 2020 - 09:23
आज बहुत दिनो बाद अलमारी खोली तुम्हारी
और अंदरसे यादों की खुशबू आ गयी..
खुद को रोक न सकी तो देखा
की अंदर कुछ पुरानी किताबे तो है,
मगर उन पन्नो पर लिखे तुम्हारे लफ्झ आज भी उतनेही जवान
एक तसबीर मिली है और उसमे तुम भी,
तसबीर मे रंग उतनेही नए लगे जितने तुम बुढे
नीचे कुछ रखा है
एक डिब्बा, जिसमे एक पुराना शिशा है
देखा तो पता चला की अब मै भी बूढी लग रही हू
इतने मे मेरे पीठपर रखे हाथ को मेहसूस किया
और देखा तो तुम खडे हो मुस्कुराहते हुए
तुमने वो हाथ मे छुपा हुआ फूल मुझे दे दिया
और मेरे नजदीक आकर खडे हो गये