कोऽहं
Submitted by पुरंदरे शशांक on 4 December, 2015 - 02:12
कोऽहं
मी सुरुप मी कुरुप
दयावान हिंस्त्र मीच
रुपवर्णा पलिकडिल
मीच तो जनावनात
तप्त शीत मीच एक
सुखदु:खातीत मीच
भव्य दिव्य मीच एक
क्षुद्र भासतो क्षणात
मी वसंत मी शिशिर
वाळवंटी मी अथांग
सागर अन् अंतराळ
भरुन सर्व निस्तरंग
मी प्रकाश मूर्तिमंत
तमातूनि मी वहात
गतिमान मीच एक
अचल शांत निर्विकल्प
ना तनात ना जगात
ना मनात ना क्षणात
भासमात्र सर्व येथ
मीपणही भास फक्त .....
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