श्री ज्ञानेश्वरीचा अभ्यास - भाग ५
Submitted by पुरंदरे शशांक on 5 December, 2013 - 00:18
श्री ज्ञानेश्वरीचा अभ्यास - भाग ५
म्हणौनि सद्भाव जीवगत | बाहेरी दिसती फाकत | स्फटिकगृहींचे डोलत | दीपु जैसे ||४७६ अ. १३||
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम् |
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः ||अ. १३-७ ||
नम्रता दंभ-शून्यत्व अहिंसा ऋजुता क्षमा । पावित्र्य गुरू-शुश्रूषा स्थिरता आत्म-संयम ॥ गीताई ॥
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