हल्ली
Submitted by डॉ अशोक on 21 November, 2013 - 13:17
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हल्ली
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तळे आसवांचे राखतो मी हल्ली
राखतो म्हणूनी, चाखतो मी हल्ली
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पाहिली स्वप्ने जी, मिळून दोघांनी
राख ही त्यांचीच, फासतो मी हल्ली
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प्रेतयात्रा मीच, काढली माझीच
फुले समाधीवर, वाहतो मी हल्ली
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सवय बैठकीची, फक्त आहे तरी
भेटण्या मैलभर, चालतो मी हल्ली
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दु:ख असते सदा, एकट्याचेच पण
गझलेतूनी ते, वाटतो मी हल्ली
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डॉ. अशोक
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