Submitted by पुरंदरे शशांक on 23 June, 2015 - 23:41
सत्संग महिमा
चित्ता व्यापुनिया | नाना दोष तण |
होत ना प्रसन्न | कदाकाळी ||
तीर्थ सत्कर्माचे | शुद्ध करीतसे |
चित्त अनायासे | साधु संगे ||
संतसंगतीने | दोष निवारता |
अपार शांतता | लाभतसे ||
सहज उच्चार | विठ्ठल नामाचा |
गाभारी मनाच्या | घुमतसे ||
चित्त होते लय | पूर्ण चैतन्यात |
सुख बरसत | अमृताचे ||
अमृताचे पुत्र | तुम्ही आम्ही सारे |
गर्जती अपारे | साधुसंत ||
घ्यावे आकळोनि | परमार्थ सार |
नमवोनि शिर | संतांपायी ||
हरि ॐ तत् सत् ||
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संतसंगतीने | दोष निवारता
संतसंगतीने | दोष निवारता |
अपार शांतता | लाभतसे ||
>> विठोबाच्या चरणी हेच मागणे आहे...
शशांकजी, आपण लिहीता तेव्हां अक्षरांचे अमृत बनते...
भावपूर्ण रचना.. विचार करण्यास भाग पाडणारी.. फार आवडली.. अंतरास भिडली..
खुप सुंदर !
खुप सुंदर !
वाह शशांकदादा, जियो _/\_
वाह शशांकदादा, जियो _/\_
सुरेख रचना. आवडली.
सुरेख रचना. आवडली.