Submitted by पुरंदरे शशांक on 6 December, 2013 - 00:46
वर्म भक्तिचे ...
भक्तिचे ते वर्म | संतांसीच ठावे | येर ते करावे | कवायती ||
कवायती जेथे | नाही काही भाव | सर्व काही वाव | वृथा शीण ||
वृथा शीण सारा | टाकून आघवा | घेई त्वरे ठावा | संतांपायी ||
संतापायी कळे | भावचि निर्मळ | भेटवी केवळ | भगवंत ||
भगवंत नित्य | राही ह्रदयात | कौतुके पहात | भक्ताकडे ||
भक्तासि कदापि | नसे विभक्तता | लाभते मुक्तता | अनायासे ||
अनायासे ऐसे | घडेल का सारे | पुन्हा पुन्हा जारे | संतांपायी ||
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