Submitted by Meghvalli on 8 July, 2024 - 13:35
प्याले से जो जाम छलक जाए,तो छलकने दो।
जब आंखों से छलक रही थी,तब किसने रोका था।।
गम अपना है,न दामन छुडाओ इससे।
खुशी जब दामन छोड़ गयी ,तब किसने रोका था ।
सच कहता हूँ यारों,पिई नहीं है मैंने, मुझे पिलाई गई है।
उन हाथों को,जो पिला रहे थे,उनको,तब किसने रोका था।।
झूमने दो मुझे आज यारों ,अगर नशे में ही सही ।
जब मै होश में था जनाब,तब ग़म ने रोका था।।
खुशी मिली तो जिन्दगी में,ऐसा नही के मिली नहीं ।
क्या बताऊं यारों,तब मैं झुमा नहीं,किसी नजर की शरम ने रोका था।।
सोमवार, ७/८/२४ ०२:३८ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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छान.
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धन्यवाद
धन्यवाद
मेघ साहेब,
मेघ साहेब,
आशय व त्यातील वेदना पोचल्या.
(येथे उर्दू / हिंदी लेखन चालते किंवा कसे हे प्रशासकांकडून चेक करून घ्यावेत एकदा, कृपया राग नसावा)
कल्पना नाही.
कल्पना नाही.
आपला अभिप्राय कळविल्याबद्दल आभार