Submitted by अजिंक्यराव पाटील on 25 May, 2022 - 13:48
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
फैजच्या ह्या ओळी असलेले गाणे शोधतोय. इतक्यातच बऱ्याचदा ऐकलेलं आहे हे नक्की, नेमके सापडत नाहीये. कुणाला माहित असेल तर प्लीज कळवा.
टीप: मुझसे पहली सी मोहब्बत नाहीये.
विषय:
शब्दखुणा:
Groups audience:
Group content visibility:
Use group defaults
शेअर करा
मुझसे पहली सी मुहब्बत - याच
मुझसे पहली सी मुहब्बत - याच गझलेत या ओळी आहेत
आठवलं.. खरतर ह्या ओळी
आठवलं.. खरतर ह्या ओळी जश्याच्या तश्या नाही तर त्या अर्थाने घेतल्या आहेत ह्या गाण्यात..
हज़ारों गम हैं इस दुनिया में
अपने भी पराये भी
मोहब्बत ही का गम तनहा नहीं हम क्या करें
ये दिल तुम बिन कहीँ लगता नहीं हम क्या करें
कुणाला माहित असेल तर नक्की
कुणाला माहित असेल तर नक्की इथे सांगा - मलाही ही गझल पूर्ण वाचायला आवडेल!
माफ करो. पण हे शोधाताहात का?
इथे पूर्ण गझल टाकली होती.
काढून टाकली.
>>> इथे पूर्ण गझल टाकली होती.
>>> इथे पूर्ण गझल टाकली होती. काढून टाकली.
कृपया पुन्हा टाकाल का? किंवा मला वैयक्तिक पाठवाल का?
धन्यवाद!
उमरे दराजसे मांगके लाये थे
उमरे दराजसे मांगके लाये थे चार दिन
दो इंटरनेटपे गये दो मायबोलीपर
इंतजार के लिये कुछ बचा नाही था.
कोई उम्मीद नजर नाही आई...
पाठवतो. चूक भूल तुम्हीच बघा.
जो पता पुछते थे किसीका कभी
जो पता पुछते थे किसीका कभी
लापता हो गये देखते देखते|
मुझसे पहली सी मोहब्बत गझल
मुझसे पहली सी मोहब्बत गझल नाही, नज्म आहे.
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरत से है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
अन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
रेशम ओ अतलस ओ कमख़ाब में बुनवाए हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लुथड़े हुए ख़ून में नहलाए हुए
जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तिरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
जीवघेणी आहे नज्म. ही आणि ती
जीवघेणी/हार्ड हीटिंग आहे नज्म. ही आणि ती 'प्यार पर बस तो नहीं लेकिन'. पण त्यांचा आधार घेऊन लिहिलेली गाणी मात्र अगदी रोमँटिक आहेत.
मला नेहमी वाटायचे की ही नज्म नेहमी मुलाच्या तोंडी असेल/असावी पण पिक्चरमध्ये स्त्रीवर फीचर केलीय. आणि मुनीमजीमध्ये देव आनंद फारच कॅज्युअली वापरतो.
माझ्या समजुतीप्रमाणे अर्थासाठी थोडीशी री-अरेंज करून परत लिहिली आहे.
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग
मैंने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
तेरा ग़म है तो ग़म-ए-दहर का झगड़ा क्या है
तेरी सूरतसे है आलम में बहारों को सबात
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
यूँ न था, मैंने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
अन-गिनत सदियों के तारीक बहीमाना तिलिस्म
रेशम ओ अतलस ओ कमख़ाब में बुनवाए हुए
जा-ब-जा बिकते हुए कूचा-ओ-बाज़ार में जिस्म
ख़ाक में लुथड़े हुए, ख़ून में नहलाए हुए
जिस्म निकले हुए अमराज़ के तन्नूरों से
पीप बहती हुई गलते हुए नासूरों से
लौट जाती है उधर को भी नज़र क्या कीजे
अब भी दिलकश है तेरा हुस्न मगर क्या कीजे
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
मुझ से पहली सी मोहब्बत मेरे महबूब न माँग