मेरा प्रिय कर्ण

Submitted by Happyanand on 25 February, 2021 - 06:28

अधर्मों भी धर्म हैं
वो मेरा प्रिय कर्ण हैं
गूंजती हैं आवाज ये कानों में सदा
कर्ण हैं सर्वश्रेष्ठ सदा सर्वदा
अंजाम से वो अंजान ना था
दुर्योधन से जुडा मगर उसका ईमान था
जानता था इन्द्र मांगने क्या आया हैं
कुरुक्षेत्र का युद्ध सब कृष्ण की ये माया है
सूतपुत्र कहकर धिक्कारा जिसे वो सूर्यपुत्र था
दानवीर कर्ण का धर्म हि मित्रत्व था
परास्त हो कर भी मृत्युंजय वो कर्ण हैं
सूर्य का तेज उसमे कवच कुंडल स्वर्ण हैं
अधर्मों भी धर्म हैं
वो मेरा प्रिय कर्ण हैं
अर्जुन से भी श्रेष्ठ वो धनुर्विद्या मे प्रवीण था
योग्यता हो कर भी शापित उसका जीवन था
राधासुत कभी सूतपुत्र कभी अंगराज उसे बताया
कौन्तेय कहा अन्त मे उसपर थी स्वयं सूर्य की छाया
देवों का देव इन्द्र दान मांगने था कर्ण से आया
कपट को जानकर भी उसे खाली हाथ ना लौटाया
कौरवों से हो कर भी कर्ण पे था धर्म का साया
कर्ण के इस कर्म मे हैं संसार का धर्म समाया
ना जरूरी जन्म गोत्र कुळ या वर्ण हैं
कर्म को ही पुरुषार्थ माना वो कर्मवीर कर्ण है
अधर्मों भी धर्म हैं
वो मेरा प्रिय कर्ण हैं....

– Anand Anil Kamble

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आनंद ह्यांची मायबोली हिंदी असावी. बहुतेक इथे मराठीत लिहिण्याचा नियम आहे. तो बघून घ्या. बाकी रचना उत्तम!