Submitted by अभिदेश on 14 January, 2015 - 13:49
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(२) सखे
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काय सांगू सखे तुला
किती हवी आहेस मला ।
माझा मीच ना उरलो
तुझ्या प्रेमात पुरता अडकलो ।।धृ ।।
जशी आहेस तशीच रहा
माझ्या डोळ्यात प्रेम पहा ।
माझा मीच ना उरलो
तुझ्या प्रेमात पुरता अडकलो ।।१।।
प्रितीचे स्वर घुमत होती दाही दिशांस
वेड लावणारा हा तुझा सहवास ।
माझा मीच ना उरलो
तुझ्या प्रेमात पुरता अडकलो ।।२।।
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हा क्षणभंगूर विसावा , तिच्याच
हा क्षणभंगूर विसावा ,
तिच्याच मिठीत का असावा?
प्रेम वेडा तो भ्रमर बावळा मंकरंद मोहात गमावुनी प्राण, प्रीत करण्यासच नसावा। कविनारायण