वास्तव

Submitted by भक्तिप्रणव on 30 October, 2014 - 03:40

झेप ही उत्तुंग
नभी गवसणी |
विसरली गाणी
भुईतली ||

स्वनामात दंग
वरलिये रंग |
आप्तांचे अभंग
दुभंगले ||

सांगू जाता कोणी
आळूवर पाणी |
स्वमग्न अंतरी
शिरेचिना ||

- संदीप मोघे
08989160981
Sandeep.moghe@yahoo.com

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