Submitted by रमा नाम़जोशी on 9 June, 2012 - 01:49 बासरीत श्वास तुझे, नाद तनातच माझ्या भाव अंतरीचे तुझे, शब्द मनातच माझ्या हा अबोल संवाद अंतराशी अंतराचा दोघा वेढुन उरतो, गंध जणु अत्तराचा....... गुलमोहर: कविताशब्दखुणा: अत्तरशेअर कराwhatsappfacebooktwittergoogle+pinterestemail व्वा व्वा.... मस्तच! व्वा व्वा.... मस्तच! Submitted by bumrang on 9 June, 2012 - 02:40 Log in or register to post comments दोघा वेढुन उरतो, गंध जणु दोघा वेढुन उरतो, गंध जणु अत्तराचा....... छान आहे Submitted by मी_केदार on 9 June, 2012 - 03:31 Log in or register to post comments छान. छान. Submitted by विभाग्रज on 10 June, 2012 - 21:37 Log in or register to post comments
व्वा व्वा.... मस्तच! व्वा व्वा.... मस्तच! Submitted by bumrang on 9 June, 2012 - 02:40 Log in or register to post comments
दोघा वेढुन उरतो, गंध जणु दोघा वेढुन उरतो, गंध जणु अत्तराचा....... छान आहे Submitted by मी_केदार on 9 June, 2012 - 03:31 Log in or register to post comments
व्वा व्वा.... मस्तच!
व्वा व्वा.... मस्तच!
दोघा वेढुन उरतो, गंध जणु
दोघा वेढुन उरतो, गंध जणु अत्तराचा....... छान आहे
छान.
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