धग

Submitted by सुधाकर.. on 24 August, 2012 - 13:09

---- खालील ओळी या दुषकाळग्रस्त भागातील प्रत्यक स्त्रिचे प्रतिनिधीत्व करतात हे कृपया वाचकांनी लक्षात घावे.
----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

माझं मातीचच लेणं, माझं मातीमोल जिणं
ऊन्हाळली काया माझी त्याले मातीचच वाण
आग पेटलेला दिस असं जाळतोय रान,
जणू नागव्य़ाने भोग ऊन्ह मागतया दान.

आयुष्याची अशी दाही दिशा होरपळ,
मरूनीया पुन्हा किती साठवावे बळ!
भुईवर ठरेना माझा संसाराचा खेळ,
कवळून घेऊ किती माझं फाटकं आभाळ!

शब्दखुणा: 
Group content visibility: 
Public - accessible to all site users