मेरे अवगुन चित ना धरो
Submitted by चैतन्य दीक्षित on 12 March, 2012 - 11:28
कोण गती जगलो हे जीवन? केली किति पापे?
हरि, हरि आता सगळ्या दु:खा, शिणलो भवतापे |
गुलमोहर:
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कोण गती जगलो हे जीवन? केली किति पापे?
हरि, हरि आता सगळ्या दु:खा, शिणलो भवतापे |