Submitted by अभिदेश on 14 January, 2015 - 13:46
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(१) एकटा
०५-१२-२०१४
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असाच एकदा फिरताना
मनात एक विचार आला ।
का पडलो मी एकटा ?
हे जग माझे असताना ।।धृ ।।
प्रश्नाचे वारे, मस्तकी फिरताना
मनाला उत्तर का मिळेना ।
का पडलो मी एकटा ?
हे जग माझे असताना ।।१।।
शब्दांना वाट फुटेना
स्त:ब्ध उभा असताना ।
का पडलो मी एकटा ?
हे जग माझे असताना ।।२।।
मित्रांमधला, मित्र मीळाला
माझ्यातला मी मीळेना ।
का पडलो मी एकटा ?
हे जग माझे असताना ।।३।।
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