Submitted by घायल on 19 February, 2016 - 22:37
कालचा दिवस भारतीय टीव्ही पत्रकारितेतला एक ऐतिहासिक दिवस होता. अण्णांच्या आंदोलनापासून मिडीयाच्या दडपशाहीबद्दल नाराज असणारे हास्यास्पद प्राणी बनत चालले होते. तुम्ही बहुमतासोबत नसाल तर देशद्रोही पासून ते नैराश्य आलेले मानसिक रुग्ण इथपर्यंत ऐकून घ्यावं लागत होतं. वेगवेगळी मतं असणं ठीक. पण जे नेमकं शब्दात सांगता येत नव्हतं त्याला काल योग्य शब्द मिळाले आणि डीटीएच चं सबस्क्रीप्शन भरून मी पुन्हा टीव्ही जिवंत केला. आपल्या पैशांनी विकतचं दुखणं घरातच नको म्हणून माहीतीचे स्त्रोतच बंद करण्याचा निर्णय घ्यावा लागलेल्या माझ्यासारख्या (कदाचित) अल्पसंख्य लोकांना मोठाच दिलासा मिळाला आहे.
ज्यांनी तो एपिसोड पाहिला नसेल त्यांच्यासाठी ही लिंक.
https://youtu.be/shZf-NrSbu0
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रवीश आप सबको पता ही है कि
रवीश
आप सबको पता ही है कि हमारा टीवी बीमार हो गया है। पूरी दुनिया में टीवी में टीबी हो गया है। हम सब बीमार हैं। मैं किसी दूसरे को बीमार बताकर खुद को डॉक्टर नहीं कह रहा। बीमार मैं भी हूं। पहले हम बीमार हुए अब आप हो रहे हैं। आपमें से कोई न कोई रोज़ हमें मारने पीटने और ज़िंदा जला देने का पत्र लिखता रहता है। उसके भीतर का ज़हर कहीं हमारे भीतर से तो नहीं पहुंच रहा। मैं डॉक्टर नहीं हूं। मैं तो ख़ुद ही बीमार हूं। मेरा टीवी भी बीमार है। डिबेट के नाम पर हर दिन का यह शोर शराबा आपकी आंखों में उजाला लाता है या अंधेरा कर देता है। आप शायद सोचते तो होंगे।
डिबेट से जवाबदेही तय होती है। लेकिन जवाबदेही के नाम पर अब निशानदेही हो रही है। टारगेट किया जा रहा है। इस डिबेट का आगमन हुआ था मुद्दों पर समझ साफ करने के लिए। लेकिन जल्दी ही डिबेट जनमत की मौत का खेल बन गया। जनमत एक मत का नाम नहीं है। जनमत में कई मत होते हैं। मगर यह डिबेट टीवी जनमत की वेरायटी को मार रहा है। एक जनमत का राज कायम करने में जुट गया है। जिन एंकरों और प्रवक्ताओं की अभिव्यक्ति की कोई सीमा नहीं है वो इस आज़ादी की सीमा तय करना चाहते हैं। कई बार ये सवाल खुद से और आपसे करना चाहिए कि हम क्या दिखा रहे हैं और आप क्यों देखते हैं। आप कहेंगे आप जो दिखाते हैं हम देखते हैं और हम कहते हैं आप जो देखते हैं वो हम दिखाते हैं। इसी में कोई नंबर वन है तो कोई मेरे जैसा नंबर टेन। कोई टॉप है तो कोई मेरे जैसा फेल। अगर टीआरपी हमारी मंज़िल है तो इसके हमसफ़र आप क्यों हैं। क्या टीआरपी आपकी भी मंज़िल है।
इसलिए हम आपको टीवी की उस अंधेरी दुनिया में ले जाना चाहते हैं जहां आप तन्हा उस शोर को सुन सकें। समझ सकें। उसकी उम्मीदों, ख़ौफ़ को जी सकें जो हम एंकरों की जमात रोज़ पैदा करती है।
आप इस चीख को पहचानिये। इस चिल्लाहट को समझिये। इसलिए मैं आपको अंधेरे में ले आया हूं। कोई तकनीकि ख़राबी नहीं है। आपका सिग्नल बिल्कुल ठीक है। ये अंधेरा ही आज के टीवी की तस्वीर है। हमने जानबूझ कर ये अंधेरा किया है। समझिये आपके ड्राईंग रूम की बत्ती बुझा दी है और मैं अंधेरे के उस एकांत में सिर्फ आपसे बात कर रहा हूं। मुझे पता है आज के बाद भी मैं वही करूंगा जो कर रहा हूं। कुछ नहीं बदलेगा, न मैं बदल सकता हूं। मैं यानी हम एंकर। तमाम एंकरों में एक मैं। हम एंकर चिल्लाने लगे हैं। धमकाने लगे हैं। जब हम बोलते हैं तो हमारी नसों में ख़ून दौड़ने लगता है। हमें देखते देखते आपकी रग़ों का ख़ून गरम होने लगा है। धारणाओं के बीच जंग है। सूचनाएं कहीं नहीं हैं। हैं भी तो बहुत कम हैं।
हमारा काम तरह तरह से सोचने में आपकी मदद करना है। जो सत्ता में है उससे सबसे अधिक सख़्त सवाल पूछना है। हमारा काम ललकारना नहीं है। फटकारना नहीं है। दुत्कारना नहीं है। उकसाना नहीं है। धमकाना नहीं है। पूछना है। अंत अंत तक पूछना है। इस प्रक्रिया में हम कई बार ग़लतियां कर जाते हैं। आप माफ भी कर देते हैं। लेकिन कई बार ऐसा लगता है कि हम ग़लतियां नहीं कर रहे हैं। हम जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं। इसलिए हम आपको इस अंधेरी दुनिया में ले आए हैं। आप हमारी आवाज़ को सुनिये। हमारे पूछने के तरीकों में फर्क कीजिए। परेशान और हताश कौन नहीं है। सबके भीतर की हताशा को हम हवा देने लगे तो आपके भीतर भी गरम आंधी चलने लगेगी। जो एक दिन आपको भी जला देगी।
जेएनयू की घटना को जिस तरह से टीवी चैनलों में कवर किया गया है उसे आप अपने अपने दल की पसंद की हिसाब से मत देखिये। उसे आप समाज और संतुलित समझ की प्रक्रिया के हिसाब से देखिये। क्या आप घर में इसी तरह से चिल्ला कर अपनी पत्नी से बात करते हैं। क्या आपके पिता इसी तरह से आपकी मां पर चीखते हैं। क्या आपने अपनी बहनों पर इसी तरह से चीखा है। ऐसा क्यों हैं कि एंकरों का चीखना बिल्कुल ऐसा ही लगता है। प्रवक्ता भी एंकरों की तरह धमका रहे हैं। सवाल कहीं छूट जाता है। जवाब की किसी को परवाह नहीं होती। मारो मारो, पकड़ो पकड़ो की आवाज़ आने लगती है। एक दो बार मैं भी गुस्साया हूं। चीखा हूं और चिल्लाया हूं। रात भर नींद नहीं आई। तनाव से आंखें तनी रही। अक्सर सोचता हूं कि हमारी बिरादरी के लोग कैसे चीख लेते हैं। चिल्ला लेते हैं। अगर चीखने चिल्लाने से जवाबदेही तय होती तो रोज़ प्रधानमंत्री को चीखना चाहिए। रोज़ सेनाध्यक्ष को टीवी पर आकर चीखना चाहिए। हर किसी को हर किसी पर चीखना चाहिए। क्या टीवी को हम इतनी छूट देंगे कि वो हमें बताने की जगह धमकाने लगे। हममें से कुछ को छांट कर भीड़ बनाने लगे और उस भीड़ को ललकारने लगे कि जाओ उसे खींच कर मार दो। वो गद्दार है। देशद्रोही है। एंकर क्या है। जो भीड़ को उकसाता हो, भीड़ बनाता हो वो क्या है। पूरी दुनिया में चीखने वाले एंकरों की पूछ बढ़ती जा रही है। आपको लगता है कि आपके बदले चीख कर वो ठीक कर रहा है। दरअसल वो ठीक नहीं कर रहा है।
कई प्रवक्ता गाली देते हैं। मार देने की बात करते हैं। गोली मार देने की बात करते हैं। ये इसलिए करते हैं कि आप डर जाएं। आप बिना सवाल किये उनसे सहमत हो जाएं। हमारा टीवी अब आए दिन करने लगा है। एंकर रोज़ भाषण झाड़ रहे हैं। जैसे मैं आज झाड़ रहा हूं। वो देशभक्ति के प्रवक्ता हो गए हैं। हर बात को देशभक्ति और गद्दारी के चश्मे से देखा जा रहा है। सैनिकों की शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल हो रहा है। उनके बलिदान के नाम पर किसी को भी गद्दार ठहराया जा रहा है। इसी देश में जंतर मंतर पर सैनिकों के कपड़े फाड़ दिये गए। उनके मेडल खींचे गए। उन सैनिकों में भी कोई युद्ध में घायल है। किसी ने अपने शरीर का हिस्सा गंवाया है। कौन जाता है उनके आंसू पोंछने।
शहादत सर्वोच्च है लेकिन क्या शहादत का राजनीतिक इस्तेमाल भी सर्वोच्च है। कश्मीर में रोज़ाना भारत विरोधी नारे लगते हैं। आज के इंडियन एक्सप्रेस में किसी पुलिस अधिकारी ने कहा है कि हम रोज़ गिरफ्तार करने लगें तो कितनों को गिरफ्तार करेंगे। बताना चाहिए कि कश्मीर में पिछले एक साल में पीडीपी बीजेपी सरकार ने क्या भारत विरोधी नारे लगाने वालों को गिरफ्तार किया है। हां तो उनकी संख्या क्या है। वहां तो आए दिन कोई पाकिस्तान के झंडे दिखा देता है, कोई आतंकवादी संगठन आईएस के भी।
कश्मीर की समस्या का भारत के अन्य हिस्सों में रह रहे मुसलमानों से क्या लेना देना है। कोई लेना देना नहीं है। कश्मीर की समस्या इस्लाम की समस्या नहीं है। कश्मीर की समस्या की अपनी जटिलता है। उसे सरकारों पर छोड़ देना चाहिए। पीडीपी अफज़ल गुरु को शहीद मानती है। पीडीपी ने अभी तक नहीं कहा कि अफज़ल गुरु वही है जो बीजेपी कहती है यानी आतंकवादी है। इसके बाद भी बीजेपी पीडीपी को अपनी सरकार का मुखिया चुनती है। यह भी दुखद है कि इस बेहतरीन राजनीतिक प्रयोग को जेएनयू में कुछ छात्रों को आतंकवादी बताने के नाम पर कमतर बताया जा रहा है। बीजेपी ने कश्मीर में जो किया वो एक शानदार राजनीतिक प्रयोग है। इतिहास प्रधानमंत्री मोदी को इसके लिए अच्छी जगह देगा। हां उसके लिए बीजेपी ने अपने राजनीतिक सिद्धांतों को कुछ समय के लिए छोड़ा उसे लेकर सवाल होते रहेंगे। अफज़ल गुरु अगर जेएनयू में आतंकवादी है तो श्रीनगर में क्या है। इन सब जटिल मसलों को हम हां या ना कि शक्ल में बहस करेंगे तो तर्कशील समाज नहीं रह जाएंगे। एक भीड़ बन कर रह जाएंगे। यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
१०० मार्कांचे नागरीकशास्त्र
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http://www.bbc.com/hindi/indi
http://www.bbc.com/hindi/india/2016/02/160220_ravish_kumar_black_screen_...
'आंख मूंदकर टीवी देखिए...'
इतक्या धुमाकुळानंतर फक्त रविश
इतक्या धुमाकुळानंतर फक्त रविश कुमार काय म्हणतो ह्याचीच वाट बघत होतो. त्याने अजिबात निराश केले नाही. सलाम!
सुनटुन्या मस्तच.
सुनटुन्या
मस्तच.
http://naukarshahi.com/%E0%A4%AB%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%9C%E0%A5%80-%E0...
कन्हैयाच्या बाबतीत व्हिडीओ मधे काय छेडछाड केली गेली याचे फॉरेन्सिक रिपोर्ट्स आले आहेत. आता अधिकृतरित्या हे व्हिडीओज फेक होते हे सिद्ध झाले आहे. एबीपी माझा ने आता पलटी मारून त्यांची दिशाभूल झाल्याचं म्हटलेलं आहे. आता त्यांनी व्हिडीओ कसा बनवला गेला हे प्रसारीत करून आपल्या चुकांवर पांघरूण घालण्याचा प्रयत्न केला आहे. पण अजूनही अर्णब गोस्वामी, झी न्यूज आणि इतर वाहीन्या काही बोलायला तयार नाहीत. त्यांना तोंड दाखवायला जागा राहीलेली नाही.
राष्ट्रपतींनी कोर्टात मारहाण करणा-या वकिलांचे परवाने रद्द केले जातील असं म्हटलेलं आहे. त्यांना खरंच अधिकार आहेत का याबद्दल कल्पना नाही. त्यांची इच्छा सरकार कितपत पूर्ण करतं हे पहायचं. पण वकिलांचे परवाने रद्द करणार असतील तर या वाहीन्यांवर वरच्या लेखात म्हटल्याप्रमाणे कारवाई होईल का ?
या वाहीन्या देशाची माफी मागतील का ?
दुसरीकडे देशद्रोहाची आणि देशप्रेमाची सर्टिफिकेटं वाटत फिरणारे कुणाबरोबर गुफ्तगू करताहेत हे पाहीलं तर ज्यांनी प्रत्यक्षात अफजल गुरूच्या समर्थनार्थ घोषणा दिल्या त्यांना हे कधीतरी अटक करतील का या बद्दल शंकाच वाटते. अफजल गुरूला निर्दोष मानणारे, काश्मीरची आझादी हा अजेण्डा असणा-यांना गुपचूप भेटणारे देशप्रेमी उघडे पडलेत दुर्दैवाने
http://khabar.ndtv.com/news/india/one-app-discloses-secret-of-bjp-1278628
http://www.kohraam.com/trendi
http://www.kohraam.com/trending-topics/patting-rhythm-lie-speaking-reach...
छी न्युज
कापोचे, लिंकबद्दल धन्यवाद.
कापोचे, लिंकबद्दल धन्यवाद.
http://mediavigil.com/2016/02
http://mediavigil.com/2016/02/21/%e0%a4%9c%e0%a4%bc%e0%a5%80-%e0%a4%a8%e...
ज़ी न्यूज़ के पापों से घिन आ रही थी, प्रोड्यूसर विश्वदीपक ने दिया इस्तीफ़ा
सकुरा, लिंक धक्कादायक आहे.
सकुरा, लिंक धक्कादायक आहे.
(No subject)
https://www.facebook.com/om.s
https://www.facebook.com/om.sudha.7/posts/928437123919953
आपके भीतर जो डर बैठा है
रवीश कुमार
रवीश कुमार ह्यांच हिन्दी आणि
रवीश कुमार ह्यांच हिन्दी आणि हिन्दी शब्दांचे उच्चार अतिशय कर्णमधुर आहेत. मी खास त्यांची हिन्दी ऐकायला त्यांच्या किल्प्स बघतोच. ह्याशिवाय ते खूप विचारपुर्वक आणि भावनाशील होऊन बोलतात. ते आवडत.
सकुरा, धक्कादायक सत्य उघडकीला
सकुरा, धक्कादायक सत्य उघडकीला आलेलं आहे.
मी तर TV news channel बघणेच
मी तर TV news channel बघणेच सोडून दिले आहे. नुसती negativity आणि आपला मानसिक खेळ करतात. आपल्या मेडीयावाल्यांनी खरतर psychologist व्हायला हवे. लोकांच्या मनावर कसा बरोबर प्रहार करायचा हे छान ओळखतात.