मायबोलीकरहो, तुम्ही कुणी का प्रयत्न करीत नाही सुलेखने करण्याचा? करा ना. मज्जा येइल, एकमेकांच्या कलाकृती बघायला, अनुभवायला.
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नवीन सुलेखने
Submitted by पल्ली on 2 July, 2009 - 05:27
गुलमोहर:
शेअर करा
भारी एकदम
भारी एकदम सगळेच ..
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रखरखीत हा रस्ता प्रवास करण्याचा,
शेवट त्याचा मिळेल तोवर बोलू काही...
सुंदर
सुंदर खरोखर खुपच सुंदर .
ए,काय
ए,काय सुरेख आहेत गं.. एकापेक्षा एक.. लगे रहो दोस्त!!!
खासच.
खासच. 'संधीकाली' मला जास्त आवडली.
पल्ले
पल्ले मस्तच आहेत सगळे
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वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटि समप्रभ|| निर्विघ्नं कुरूमेदेव सर्वकार्येषुसर्वदा ||||
सगळेच छान
सगळेच छान
<<< तुम्ही
<<< तुम्ही कुणी का प्रयत्न करीत नाही सुलेखने करण्याचा >>>
पल्ले, आम्ही नॉर्मल लिहीलेल स्वतःलाच वाचता येत नाही कधीकधी, सुलेखन काय कप्पाळ करणार ? नुस्त लिहितानाच घाबरतो मग आपोआप त्या लेखनाच सू लेखन होउन जातं.
मग आपोआप
मग आपोआप त्या लेखनाच सू लेखन होउन जातं. >> काय ही सु वचनं :खीखी:
अमित अग्दी
अमित अग्दी अग्दी :d
क्या बात
क्या बात है पल्ले.....भन्नाट एकदम.... सगळेच अप्रतिम.... सरी गं सरी आणि संधीकाली या अशा यांसाठी तर तुला प्रत्येकी १००० मोदक :स्मितः
आम्ही नॉर्मल लिहीलेल स्वतःलाच वाचता येत नाही कधीकधी, सुलेखन काय कप्पाळ करणार ?>>>>>>>>>>इथे पण तिच गत आहे
(जर हे तीन वेळा टाईपलं तर क्षमा असावी)
क्या बात
क्या बात है पल्ले.....भन्नाट एकदम.... सगळेच अप्रतिम.... सरी गं सरी आणि संधीकाली या अशा यांसाठी तर तुला प्रत्येकी १००० मोदक :स्मितः
आम्ही नॉर्मल लिहीलेल स्वतःलाच वाचता येत नाही कधीकधी, सुलेखन काय कप्पाळ करणार ?>>>>>>>>>>इथे पण तिच गत आहे
(जर हे तीन वेळा टाईपलं तर क्षमा असावी)
क्या बात
क्या बात है पल्ले.....भन्नाट एकदम.... सगळेच अप्रतिम.... सरी गं सरी आणि संधीकाली या अशा यांसाठी तर तुला प्रत्येकी १००० मोदक :स्मितः
आम्ही नॉर्मल लिहीलेल स्वतःलाच वाचता येत नाही कधीकधी, सुलेखन काय कप्पाळ करणार ?>>>>>>>>>>इथे पण तिच गत आहे
(जर हे तीन वेळा टाईपलं तर क्षमा असावी)
<<< (जर हे तीन
<<< (जर हे तीन वेळा टाईपलं तर क्षमा असावी) >>>
वैभव हि सिग्नेचर ठेव की.
कीती छान
कीती छान ग्.कस करतेस ग ईतक छान सुलेखन?
चालेल का?
चालेल का? नाहीतर मुद्दाम करतोय असं वाटायला नको
ठमे, आहाहा..
ठमे,
आहाहा.. सुरेख ग..
- अनिलभाई
It's always fun when you connect.
आभारी. खूप
आभारी. खूप छान वाटतंय
फार फार
फार फार आवडलं सगळंच सुलेखन. 'महाराष्ट्राची लोकधारा" सगळ्या जास्त!
अतिशय
अतिशय सुंदर!!!!
ए,,मस्त्..सर
ए,,मस्त्..सरीवर सर..एकदम आवडल॑..
अप्रतिम .....
अप्रतिम ..... सगळेच पुलेशु.
अप्रतिम!!
अप्रतिम!!
नेहमीप्रम
नेहमीप्रमाणेच सुरेख पल्ले.
खुपच छान
खुपच छान आहेत सगळी.. झकास
मला सावली आणि महाराष्ट्राची लोकधारा जास्त आवडले... कारण त्यात शब्दांचे रेखाटनच त्यातला भावार्थ सांगत आहे... बाकी मधे ते सांगायला वेगळी चित्रे काढायला लागली..
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दुनिया मे है जंग क्यो...बेहेता लाल रंग क्यो..
सरहदे है क्यो हर कही ... सोचा है..ये तुमने क्या कभी ?
सर्व
सर्व आवडली. मस्त!
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असं एखादं पाखरू वेल्हाळ, त्याला सामोरं जातंया आभाळ!
पल्ली,
पल्ली, एकदम सुलेख! सुलेखिव!
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'ज्याला कलाकार नाही बनता येत तो टीकाकार बनतो'
आयला
आयला पल्ले, ग्रेट
मस्त आहेत सगळीच सुलेखने
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To get something you never had, you have to do something you never did.
सगळंच
सगळंच आवडलं
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अबीर गुलाल उधळीत रंग | नाथाघरी नाचे माझा सखा पांडुरंग ||
सगळे छान
सगळे छान आहेत...
सुलेखन कसं करतात हे मला तुझ्याकडुन जाणुन घ्यायला आवडेल..म्हणजे सुरुवात कशी करायची वगैरे...
पॉश!
पॉश! 'लोकधारा' भन्नाट!
त्यासोबतची चित्रंही तुझीच न?
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God knows! (I hope..)
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