Gobu
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| Saturday, October 06, 2007 - 6:50 pm: |
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पाण्यांच एक बरं असतं थकुन कुठंतरी नक्की थांबतं मन माझ वेडं खरं बेभान होऊन धावत रहातं
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R_joshi
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| Monday, October 08, 2007 - 11:01 am: |
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रुप्स गोबु ब-याच दिवसांनी आलास वळणांचा विचार करायची सवयच नसते प्रश्नोत्तरांना जीवन वलय निर्माण करायची ताकद मात्र त्यात असते. प्रिति
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R_joshi
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| Monday, October 08, 2007 - 11:11 am: |
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थांबलेले पाणी डबक बनुन राहत वाहता आल नाहि याच दु:ख जणु सांगत मन माझ निर्झरापरी खळखळाट त्याचा भारी मुठीत कधी मावे ना ते आशेच्या आकाशापरी प्रिति
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तुझी नि माझी वाट समांतर एकत्र चाललो तरी कसे मिटेल अंतर???
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Geeta1
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| Tuesday, October 09, 2007 - 8:42 am: |
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naahi meetale antar tari eek samaadhaan aahe samaantar aahot mhanun shevat paryant saath aahe
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Rajya
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| Tuesday, October 09, 2007 - 11:23 am: |
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गीता समांतर रेषांचं बरं असतं त्या कधीच एकमेकींना नाही छेदत पण याला 'साथ' म्हणावं तरी कसं त्या धावतात फक्त एकमेकीं सोबत गोब्या, प्रिती, भ्रमा बर्याच दिवसांनी आलात
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Geeta1
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| Tuesday, October 09, 2007 - 11:40 am: |
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rajya ---- saath asane mhanaje bhetana jaruri nahi sobathila najarechaa aadhaar asane he hi kaahi kami naahi
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R_joshi
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| Wednesday, October 10, 2007 - 4:56 am: |
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राजा तु ही ब-याच दिवसांनी आलास गीता साथ तुझी आभाळासारखी सदैव अशीच राहु दे मैत्रीचे प्रेमळ बंध नजरेतही तुझ्या दिसु दे समांतर जरी आभाळ धरतीला छत्र त्याचे सुखावणारे सुखाच्या किना-यावरुन पाहताना क्षितिजापाशी मिळणारे प्रिति माणिक, रुप,गोबु कोठे अडकलात? (बॉस आराम करतोय की काय ऑफिसमध्ये )
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Rajya
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| Wednesday, October 10, 2007 - 6:08 am: |
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गीता प्रिती तुझ्या माझ्या प्रीतीला मिलनाची जोड हवी आसक्तीच्या सक्तीला मुक्तीची ओढ हवी
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Athak
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| Wednesday, October 10, 2007 - 6:46 am: |
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वा वा छान आप लोग लिखते रहो हम वाचनेवाले है बरं का खुप छान लिहिता तुम्ही .. एकसे बढकर एक
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Geeta1
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| Wednesday, October 10, 2007 - 7:35 am: |
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rajya maitrichaa gandha asude, nako meelanachee oodh, muktichaa dhyaas???????? kashaalaa? nako to nasataa chhanda.
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Rajya
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| Wednesday, October 10, 2007 - 7:37 am: |
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राज्या मैत्रिचा गंध असुदे, नको मीलनची ओढ, मुक्तिचा ध्यास???????? कशाला? नको तो नसता छंद. गीता आता कसं छान वाटतं बघ वाचायला असं मराठीत लिही ना
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Geeta1
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| Wednesday, October 10, 2007 - 8:21 am: |
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pan kasa lihu???? te mala kalat nahi
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Geeta1
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| Wednesday, October 10, 2007 - 8:37 am: |
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hi ptiti tu lihilelya donhi charolya mast aahet. mala uttar suchat nahiye. suchalyavar lihin
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Rajya
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| Wednesday, October 10, 2007 - 8:39 am: |
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इथे खाली Devnagri असं लिहिलंय तिथे क्लिक कर मग एक बॉक्स ओपन होईल, त्यात डाव्या बाजुला इंग्रजी मध्ये लिही म्हणजे उजव्या बाजुला आपोआप मराठीत येईल, लिहुन पुर्ण झालं की copy message वर क्लिक कर त्याच बॉक्स च्या उजव्या बाजुला वर "देवनागरीत लिहीण्यासाठी मदत" असं आहे, काही problem असेल तर तिकडे क्लिक कर
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R_joshi
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| Wednesday, October 10, 2007 - 9:10 am: |
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राजा गीता सावकाश उत्तर दे पण मराठीत लिहि प्लीज... आणि लिहित रहा नक्कि मैत्रिचा छंद माझ्या जीवास असा जडला मुक्तीच्या ध्यासात नव्हे जीव मैत्रितच मुक्त जाहला प्रिति
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तुझ्या माझ्या मिलनाला आसक्तीची साथ जसे पौर्णिमेच्या चंद्राला हसरी चांदरात... रुप... राज्या, प्रिति, गीता, गोबुदा सुरेख... भ्रमा मस्तच..
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गोबुदा तुमच्यासाठी... वेड्या मनाला असच कधीतरी भटकु द्यावं.... त्याच्या बेभानपणाला असच कधीतरी बागडु द्यावं... त्याच्यावरच्या बंधनामुळे तो अजुनच बेबंद होईल असच मोकळ सोडुन त्याला मुक्तपणे उमलु द्यावं.... रुप..
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Gobu
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| Wednesday, October 10, 2007 - 10:00 pm: |
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प्रीतीबेन, राजा, रुप्स, ठान्कु! उमलणार्या माझ्या मनाला तु अशी साद द्यावी जशी बहरणारी कळी पाहुन फुलपाखरानेही दाद द्यावी!
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Ashwini_k
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| Thursday, October 11, 2007 - 5:38 am: |
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इथे चारोळ्यांची फॅक्टरी दिसते हा बिबि म्हणजे चारोळीयुक्त श्रीखंड एकही चारोळी मला न सुचते येथील चारोळ्यांचा झरा मात्र वहात राहूदे अखंड
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