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अर्रे टण्या! आत्ता ओळखलं मी तुला! अंबाबाई तालीम आठवते का मिरजेतली! चित्रपट ओळखाच्या जागेत ही ओळख निघाली
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अंबाबाई तालीम न आठवून कशी चालेल. मला तुमचा वाडा पण आठवतो. मी शांतुकाकां कडे यायचो ना नेहमी तुमच्या वाड्यात.
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profile मधे hyd आहे पण इतक्या रात्री बोलतोयस त्यावरून वाटत नाही भारतात आहेस असं. gtalk id असेल तर email कर रे.
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Tiu
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| Thursday, January 10, 2008 - 10:20 pm: |
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सशलने टाकलेला फोटो बहुतेक "डॉन" मधला वाटतोय!
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Ankyno1
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| Friday, January 11, 2008 - 11:32 am: |
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"जय?... लेकिन बेटे तुम्हारा नाम तो विक्रमजीत है ना...." "वो क्या है ना अंकल... बचपन मे हम दोनोंने शोले पिक्चर कुछ पच्चीस पचास बार देखी... और इमोशन में आके हम दोनोंने अपने नाम चेंज कर दिये... जयपाजी.... वीरुपाजी... हैं जी.... हैं...."
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Tulip
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| Friday, January 11, 2008 - 12:32 pm: |
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सशल चा अमिताभ मला अभिमान मधला वाटतोय. एका फ़िल्म मधे ही एक कविता आहे. फ़िल्म ओळखा. चक्रव्यूह से बाहर निकलनेपर मुक्त हो जाऊं भले ही किसी चक्रव्यूह की रचना में फ़र्कही ना पडेगा! क्ल्यू हवा असेल तर एका जबरदस्त मराठी कथाकाराची मुळ कथा जी दुर्लक्षित राहिली, आणि पटकथा एका नाव असलेल्या मोठ्या नाटककार लेखकाची असल्याने त्याचेच नाव गाजले. फ़िल्म हलवून टाकण्याइतकी ग्रेट!)
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Ajjuka
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| Friday, January 11, 2008 - 1:08 pm: |
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अर्धसत्य तो क्लू कसला धडधडीत सांगून टाकलंयस तू.
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अँकी ने लिहिलेले डायलाॅग गोविन्दा आणि सन्जय दत्त चे वाटतात. चित्रपट "जोडी नं १" आहे काय?
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अंकुर, जोडी नं वन. गोविंदा आणि संजय दत्त. सोबत ट्विंकल आणि अबु सलेमची मोनिका बेदी.
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अर्धसत्य मूळ कथा श्री दा पानवलकरांची.. सूर्य ह्या कथासंग्रहातील. अर्धसत्यची पटकथा विजय तेंडुलकरांची. आणि ही कविता दिलीप चित्र्यांची. ट्युलिप, ती कविता बहुतेक अशी आहे. नक्की आठवत नाही, आठवत आहे त्याप्रमाणे टाकतोय. चक्रव्यूह में घुसने से पहले, कौन था मैं और कैसा था, यह मुझे याद ही न रहेगा. चक्रव्यूह में घुसने के बाद, मेरे और चक्रव्यूह के बीच, सिर्फ एक जानलेवा निकटता थी, इसका मुझे पता ही ना चलेगा. चक्रव्यूह से निकलने के बाद, मैं मुक्त हो जाउं भले ही, फिर भी चक्रव्यूह की रचना में फर्क ही न पडेगा. मरु या मारु, मारा जाऊं या जान से मार दुं इसका फैसला कभी ना हो पायेगा. सोया हुआ आदमी जब नींद से उठकर चलना शुरु करता है, तब सपनों का संसार उसे, दोबारा दिख ही न पायेगा. उस रोशनी में, जो निर्णय की रोशनी है सब कुछ समान होगा क्या? एक पलडे में नपुंसकता, एक पलडे में पौरुष, और ठीक तराझू के कांटे पर 'अर्धसत्य'.
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Ankyno1
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| Friday, January 11, 2008 - 4:27 pm: |
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जोडी नं १ हे उत्तर बरोब्बर... आता त्याच पठडीतला हा सिनेमा ओळखा..... जो चाचा है वही भतीजा है और जो भतीजा है वही चाचा है... और चाचा कोई है ही नही...
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Tulip
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| Friday, January 11, 2008 - 4:29 pm: |
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हो. अगदी बरोबर आठवलीय :D आता हा डायलॉग. जबरी होती फ़िल्म. नाहीच आठवली तर क्लू देईन. ओये ध्रीतेष्टर के पुत्तर द्रौपदी को वापस कर, वो मेरे साथ जायेगी. ओये! द्रौपदी तेरे अकेले की नही हैं, हम सब शेअरहोल्डर्स हैं ..
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Anjali28
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| Friday, January 11, 2008 - 4:46 pm: |
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जाने भी दो यारों?
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Tulip
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| Friday, January 11, 2008 - 5:49 pm: |
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हम तो पंछी हैं .. फ़ड फ़ड .. .
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Upas
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| Friday, January 11, 2008 - 7:53 pm: |
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ह्यावर्षाची आमची सुरुवात जाने भी दो यारो पहातच झाली.. :-)
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Sashal
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| Friday, January 11, 2008 - 8:24 pm: |
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जाने भी दो यारों .. जबरी मला त्यातला तो अर्जून चा dialogue आवडतो .. " मेरा धनुष भी तोड दिया .. मेरा xx पैसोंका नूकसान किया .. जाओ, मै नही करता नाटक वाटक .." हम तो पंछी हैं .. फ़ड फ़ड .. . >>> हा पुढचा clue आहे का?
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Asami
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| Friday, January 11, 2008 - 8:32 pm: |
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हम तो पंछी हैं .. फ़ड फ़ड .. .>> नंहेसे प्यारेसे पंछी. सशल, Ankyno1 Friday, January 11, 2008 - 11:27 am: च्या post च्या उत्तराबद्दल आहे ते ग. कळलेच असेल न कुठली movie ती
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Sashal
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| Friday, January 11, 2008 - 8:35 pm: |
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अंदाज अपना अपना बहुतेक .. त्यात तो आमिर चा अजून एक होता, ".. बल्की मै तो ये कहूंगा की आप पुरूष ही नही .. महापुरूष है! "
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Prajaktad
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| Friday, January 11, 2008 - 8:55 pm: |
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अंदाज अपना अपनाच तो! आमिर ने जबरी भाव खाल्ला सल्लुपुढे! ४ नगांना एकत्र आणुन एवढी जबरी कॉमेडी कशी केली ते डायरेक्टरलाच ठावुक माझ्याकडे AAA ची विडियो होती कैक वेळा बघुन तिची पार वाट लागली.
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Prajaktad
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| Friday, January 11, 2008 - 9:02 pm: |
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क्लु१..आब्बा .. झब्बा ... डब्बा.. क्लु२. यातिल हिरोईन आणी हिरो प्रत्यक्श जिवनात दिर आणी वहिनी आहेत.. ओळखा पाहु??? सशल तु अमिताभ चा फोटो टाकलेला चित्रपट कोणताय..
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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