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Kripya jar kunakade 'Sundara Manamadhye Bharli' lavni asel tar ti ethe lihavi
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R_joshi
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| Saturday, April 15, 2006 - 10:02 am: |
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सुदंरा मनामधि भरलि जरा नाही ठरलि हवेलित शिरली मोत्याचा भागं रे गड्या हौस नाही पुरलि म्हणून विरलि पुन्हा नाही फिरलि कुणाची सागं जशि कळी सोनचाफ्याचि न पडु पाप्याचि द्रुष्टि सोप्याचि नसल ती नार अति नाजुक तनु देखणी गुणाचि खणी ऊभी नवखणी चढून सुकुमार जशि मन्मथरति धाकटि सिहंसम कटि ऊभी एकटि गळ्यामधि हार अंगी तारुण्याचा बहर मारिते लहर मदन तलवार पायि पैजण झुबकेदार कुणाचि दार कुण सरदार हिचा भरतार कुलविरुद्याजटावटिकलि मनामधे टिकली नाही हटकलि तेज अनिवार चालते गजाचि चाल लट सुटली कुरळे बाल किनकाप अंगिचा लाल हिज पुढे नको धनमाल हि शुद्ध इदुची कळा मतिस ना कळा इतर वाकळा न हिज हुनि चागं कविराय चमकला हिर लोकशाहिर इतर शाहिर काजवे वागं!! हि लावणि शाहिर राम जोशी याची आहे.
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मायबोली |
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००८ |
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