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गडावर पसरली आता निवळ शांतता दूर पावा वाजवणारा गुराख्याचा पोर आहे.
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Ultima
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| Tuesday, April 01, 2008 - 9:27 am: |
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मी केला जरी त्या मुळ कविचा उल्लेखही मज म्हणतील सारे मी चोरावर मोर आहे. सुदुपार लोक्स.
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कशी नेमकी आज जीभ भाजलेली जेवणातले सुप हॉट अन सोर आहे..
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अमावस्येगत रात्र ही आज का अंधारलेली आकाशात आश्वासक चंद्राची कोर आहे.
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Shyamli
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| Tuesday, April 01, 2008 - 9:36 am: |
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म्हणाले टीपी जरासा करेन मीही कविता कि गज़ल, जिवाला घोर आहे ~d
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>>अमावस्येगत रात्र ही आज का अंधारलेली आकाशात आश्वासक चंद्राची कोर आहे श्र.. हा शेर बाद.. याला अर्थ आहे..
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Shyamli
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| Tuesday, April 01, 2008 - 9:56 am: |
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चला निघावे धरावी वाट स्वैंपाकघराची सांगते घर-दार किती मी कामचोर आहे टीपी करता करता कित्ती खरं बोलुन जातो नै आपण :~D चलो म्या कल्टी लोक्स
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Shraddhak
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| Tuesday, April 01, 2008 - 11:24 am: |
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देवा, खरंच की काय? लोकहो, पुन्हा गप्प का बाबांनो? गड जागता ठेवा की.
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Meenu
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| Tuesday, April 01, 2008 - 12:03 pm: |
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आज मी बसुन घरी काढली झोपही मिळे सुट्टी हवी तेव्हा असा जॉब थोर आहे. हे उगीचच नेहेमीप्रमाणे. ए अल्टे त्या कालच्या मेल थ्रेडला मारुन टाकलस की काय गं कार्टे ..?
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Ultima
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| Tuesday, April 01, 2008 - 12:15 pm: |
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अग मीनु ..... मी उत्तर देते तुला उद्या .....
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Admin
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| Tuesday, April 01, 2008 - 10:47 pm: |
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हा बातमीफलक आता इथे हलवला आहे /node/1609
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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मायबोली |
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००६ |
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