ok maajhahii g... !!! same here.. chal bye maybolilaa ajchaa divas..
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व्यर्थ ती बंधने त्यास त्यांनी कधी का पाळलेले काय ह्यांना भावनेचे हे वासनेवर भाळलेले
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Amayach
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| Wednesday, May 24, 2006 - 7:36 am: |
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सगळ्याच चारोळ्या मस्तच आहेत. आने दो और..
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Shyamli
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| Wednesday, May 24, 2006 - 10:10 am: |
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देवा सही जवाब...
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Jaaaswand
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| Wednesday, May 24, 2006 - 10:31 am: |
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श्यामली देवा भले उमलत्या त्या उन्मेषाला शब्द फ़ुलांचा का पहारा कधी तरी माळून घे अंगावरचा हा शहारा जास्वन्द...
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तुषार भाऊ.. नो झेप्स..
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देवा .. अरे बर्ड फ्लू वर आहे बहुतेक काहीतरी ... चार घास दूरच रहा ... तुषार देवनागरीत टाक ना ...
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नविन कोड language ...वाटते... !!! फ़क्त ज्याच्यासाठी लिहिलि त्यानेच वाचावी अशी काहितरी सोय दिसते...!!!
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Meenu
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| Thursday, May 25, 2006 - 4:12 am: |
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काहिचं कसं रे तुला द्यायचं नाहिये मला.. ठिक आहे हे दु:ख दिलस तेही काही कमी नाही तु दिलेलं दु:ख मला सगळ्यात जास्त प्रिय आहे तुझ्या दु:खाविना या जगण्याला काय अर्थ आहे.. तुझा स्पर्श अनुभवला आता अजुन काही नको त्यातुन जिव्हाळा जाणवला आता अजुन काही नको नव्हता वासनेचा गंध तुझ्या राजा स्पर्शाला नाही उरली आज सीमा माझ्या मनीच्या हर्षाला
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मीनु... वा.. वा... !!!.. .. .. .. ..
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Smi_dod
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| Thursday, May 25, 2006 - 4:37 am: |
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मिनु नेहमी प्रमाणेच छान.....
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Tushars
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| Thursday, May 25, 2006 - 5:28 am: |
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घात जगायचं पुष्कळ म्हणुन एका पिलाने दिला "कलु" म्हणाले झालाय मला "बर्ड फ़्लू" मला हात नका लावु मनुष्य निर्दयी त्याने केला घात निष्पाप पिल्लाचाच केला निप्पात
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Athak
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| Thursday, May 25, 2006 - 5:46 am: |
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good one मीनु , छान लिहीलेस keep it up
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Rmd
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| Friday, May 26, 2006 - 2:34 am: |
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पावसाचे चुकार ढग भांबावलेला वारा उन्हाशी बंड करणारा तापमानाचा पारा ओल्याचिंब थेंबांसाठी आतुरलेलं मन पहिल्यावहिल्या वळीवासाठी तहानलेले क्षण
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भागेल तुझी तहान पडेल वळीवाचा पाऊस वर बघ आभाळात पिंजला आहे काळा काळा कापुस मंडळी माफ़ करा तुमच्या सारख्या दिग्गजां समोर मी लिहिन म्हणजे..????
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Athak
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| Friday, May 26, 2006 - 3:18 am: |
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अरे वा मान्सुन सुरु झाला का कोसळा अश्याच सरीसर सरी येवु द्या माधुरी , good start
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Maudee
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| Friday, May 26, 2006 - 3:29 am: |
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काळा काळा कापूस नुसता पिंजला आहे शेतकरी दादा मात्र ख़ंगला आहे
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Smi_dod
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| Friday, May 26, 2006 - 3:38 am: |
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पिंजुन पिंजुन पाणीच संपले बरसायला खाली काय उरले
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ओलं सरपण.. ओली फ़ुंकणी लगलग शेताला जायची घाइ... आज चुल पेटत का न्हाइ..., लयी तारांबळ केली... वरुण राजानं बाई...!!!
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सरीवर सरी येती... समरसुन बरसती, आज... ओल्या मातीला ग.. मायेचा वास का नाही..., माझी माती लांब सयी... कशी भेटु.. समजत नाही!!!
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