Rmd
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| Tuesday, May 23, 2006 - 8:51 am: |
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तुझं प्रत्येक रूप मला मनापासून आवडतं माझं हरवलेलं मन मला तुझ्या चेहर्यात सापडतं
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थरथरणार्या ओठांतली अस्फ़ुटतेची खळबळ तू शांत स्तब्ध वार्यामधली मुक्या पर्णांची सळसळ तू जास्वन्द...
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Moodi
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| Tuesday, May 23, 2006 - 8:59 am: |
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काय जास्वंद, झाडाच्या पानात लपला होतास का रे? 
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Ninavi
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| Tuesday, May 23, 2006 - 9:00 am: |
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बाप रे!! इथे काल झालं तरी काय!! सही लिहीलंय सगळ्यांनीच!
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Rmd
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| Tuesday, May 23, 2006 - 9:08 am: |
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दबलेल्या श्वासांमधला तृप्तीचा हुंकार तू हव्याहव्याश्या वाटणार्या स्पर्शाचा झंकार तू...
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Shyamli
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| Tuesday, May 23, 2006 - 9:17 am: |
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श्वास तू ध्यास तू जीवनाची आस तू वेड तू हट्ट तू तुच मी अन मीच तू!!! श्यामली!! हि एक जुनीच... नीनावी वेड ग...
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Ldhule
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| Tuesday, May 23, 2006 - 9:25 am: |
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वा !! काय मस्त चारोळ्या लिहिताय सगळे. खुप छान वाटत वाचायला.
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मूडी कुठे नाही ग... इथचं पल्याड होतो जरा.. उन्हाने हैराण झालो.. अन आलो मग झूळूक घ्यायला प्रीतीत अपुल्या नवेच मी खेळ होते खेळले पूरीयात माझ्या मी तुझे ते पैंजण्-गाणे ओवले जास्वन्द...
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Jayavi
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| Tuesday, May 23, 2006 - 10:11 am: |
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आई गं..... काय चाललंय काय इथे? simply superb! एकसे बढकर एक रे दोस्तांनो......... चलने दो
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होऊन आवर्त मग टाकलेले दान सुटलेला तोल अन राखलेले भान जास्वन्द...
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Smi_dod
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| Tuesday, May 23, 2006 - 11:24 pm: |
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डोळ्यात तुझ्या कशी काय हरवले तोल रखायचे भान च नाही राहीले कुठल्या उन्मादात दान टाकत गेले आता मात्र.... तु गेल्यावर भान आले तोल राखायला काहीच बाकी नाही उरले जाताना तु बरोबर माझे श्वास सुध्दा नेले
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झक्कास पब्लिक.. चालु द्या
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Princess
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| Wednesday, May 24, 2006 - 3:04 am: |
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स्मिते, कोणाकोणाचे श्वास घेउन गेलीस ग... सकाळपासुन कोणि इकडे काही लिहितच नाहिये. निनावि, लोपा, वैभव, पूजा कुठे हरवलात आज??स्मिता, छान लिहिलेस
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Smi_dod
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| Wednesday, May 24, 2006 - 3:15 am: |
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धन्स प्रि....तु झकास लिहितेस? 
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Rmd
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| Wednesday, May 24, 2006 - 3:48 am: |
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फासे फिरले नशीबासंगे डाव संपले हरता हरता श्वासही माझे नाही राहीले तुझ्यामागुनी फिरता फिरता
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sm-dod & rmd... ajun yeu dyaag... aani prnces... tu kaa maage raahilis...!!!
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गुंतलेले श्वास...गुंतलेले मन.. हा गुंता सोडवण सोपं नाहिये काहीतरी तोडल्याशिवाय... सुटत नाही तो..
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Shyamli
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| Wednesday, May 24, 2006 - 4:32 am: |
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वैशाली... हम्म... रुपा मस्तच... गुंता सोडवण्यासाठी काहीतरी तोडावेच लागेल नाहीतर श्वास घेणही आता सोडावे लागेल!!! श्यामली!!!
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Sania
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| Wednesday, May 24, 2006 - 4:33 am: |
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आज जरा गंभीर विषयावर लिहित आहे बालपण सारे बसस्टाॅप वर गेले मातीत, धुळीत खेळ्त तारूण्य आले कळायच्या आत तारूण्याचा आविष्कार समजलेच नाही कधी झाले वासनेची शिकार
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Princess
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| Wednesday, May 24, 2006 - 5:20 am: |
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लोपा, आज काही लिहायला वेळच नाहीये ग. deadline जवळ आलिये. कामाचा डोंगर आहे सध्या.
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