Poojas
| |
| Sunday, May 21, 2006 - 4:33 am: |
| 
|
निनावी.. क्या गुरु फिरसे शुरु..!! अगं तुला मेल टाकलीय.. check कर. 
|
Jayavi
| |
| Sunday, May 21, 2006 - 5:14 am: |
| 
|
निनावि, पूजा, अथका..........सलाम नाती फ़ुलवी, नाती रुजवी फ़ुलवी स्वप्नेही धरी कर तू वर्षा प्रेमसरींची प्रीत बघ फ़ुलते कशी
|
Shyamli
| |
| Sunday, May 21, 2006 - 5:26 am: |
| 
|
अशीच फुलावी प्रीती अन मोहरावित नाती प्रेमसरींनी चींब भीजावी सावळी तनुही श्यामली!!! जया,अथक,पूजा,निनावि....
|
Dha
| |
| Sunday, May 21, 2006 - 12:58 pm: |
| 
|
अरे, क्या बात है! वाह वा!
|
Jo_s
| |
| Sunday, May 21, 2006 - 11:22 pm: |
| 
|
प्रेम बीम सगळ खोटं खोटीच ती बरसात स्वत्:पुरतं जगणारे सुखी बाकी सारे त्रासात सुधीर
|
Shyamli
| |
| Sunday, May 21, 2006 - 11:28 pm: |
| 
|
स्वत:पुरत जगण्याला जगण म्हणाव का? त्रास होतो खूप म्हणुन प्रेम करण सोडाव का? श्यामली!!!
|
कोण म्हणतं जगण्यासाठी प्रेम करणं सोडाव? आनंद देण्यात आहे फक्त मागणं सोडावं
|
Smi_dod
| |
| Monday, May 22, 2006 - 12:04 am: |
| 
|
आनंद देण्यातला.. कधीतरी घेण्याचा पण मिळावा प्रेम बिम सगळ खोट जगण तेवढ खरं
|
Jayavi
| |
| Monday, May 22, 2006 - 12:12 am: |
| 
|
जगणं खरं...प्रेमही खरं दोन्ही बाजू नाण्याच्या एकाच जगण्यावरती प्रेम कर तू परमानंद आहे त्यात
|
Shyamli
| |
| Monday, May 22, 2006 - 12:17 am: |
| 
|
काय द्याव आणि काय घ्यावं प्रेमातही असं घडावं मीळालच नाही प्रेम म्हणुन देणंपण सोडावं? श्यामली!!!
|
Krishnag
| |
| Monday, May 22, 2006 - 12:30 am: |
| 
|
अरे वा मधल्या काही दिवसांच्या दुष्काळानंतर बहरली की झुळुक पुन्हा!! सर्वांच्या झुळुका अप्रतीम!! 
|
Athak
| |
| Monday, May 22, 2006 - 12:55 am: |
| 
|
अरे वा प्रेमवीर प्रेमविरांगीणी प्रेमाची महती सांगताहेत
|
उगाच कशाला गंमत करता उगाच कशाला देता धीर तुम्हीच सांगा खरे खरे प्रेमातही कुणी का उरतो वीर
|
Shyamli
| |
| Monday, May 22, 2006 - 1:13 am: |
| 
|
प्रेम पचऊन पाठ फिरऊन जाणारा मारत नसतो मोठा तीर तीतकच हळव होऊन साथ देतो तोच असतो खरा वीर श्यामली!!!
|
Athak
| |
| Monday, May 22, 2006 - 1:24 am: |
| 
|
प्रेमामुळे घडली युद्धे पडले कित्येक धारातिर्थी प्रेमाची अशी महती युगेयुगे गाती प्रेमवीर किर्ती
|
Smi_dod
| |
| Monday, May 22, 2006 - 1:25 am: |
| 
|
साथ देण्यातलं हळवपणं कुठे उरलच नाही पाठफ़िरवण्यातलं विरत्वच फोफावलय
|
Athak
| |
| Monday, May 22, 2006 - 1:29 am: |
| 
|
करुणरस आणि वीररस सोबत वाहतोय आज 
|
Shyamli
| |
| Monday, May 22, 2006 - 1:31 am: |
| 
|
फिरवणारे फिरवु देत पाठ मनाची मनाशी असतेच पण गाठ कितीही नाही म्हणलं तरी आठवत असणारच अंधारात श्यामली!!!
|
Krishnag
| |
| Monday, May 22, 2006 - 1:34 am: |
| 
|
देण्या घेण्याच्या व्यवहारात प्रेम कधी आणू नये प्रेमाचे रंगी रंगताना हिशेबाचे भान ठेवू नये
|
अहो प्रेमवीर ते औरच होते जे पडले धारातिर्थी आज प्रेमवीरा ठावूक असति सुरेची रुपे दोन.. धारा अन तिर्थी
|