धूळभरले उष्ण वारे, तप्त वाटा सोसे पाऊल. दिसताच तू अवचित, वाटे, शीतल वैशाखचाहूल.
|
Pendhya
| |
| Monday, May 01, 2006 - 12:19 am: |
| 
|
वा! नव्या मासा ची ऊत्तम सुरवात.
|
Jayavi
| |
| Monday, May 01, 2006 - 12:50 am: |
| 
|
वारे होती जरा ऊष्ण लागे वैशाख चाहूल तुझ्या साथीच्या उबेची जणू चाहूल चाहूल
|
Giriraj
| |
| Monday, May 01, 2006 - 1:30 am: |
| 
|
कोण ही 'ढ' आशा? मित्रा,छान सुरवात!
|
गिरी वैशाखातच आशा 'ढ' वाटायला लागली का? जया माळ मोगरा केसांत, सखे ऐन वसंतात, म्हणे येईन सजण. लागे झळ वैशाखाची, आणि एकलेपणाची; त्याने तोडले वचन.
|
Dhruv1
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 2:12 am: |
| 
|
शांत ठिबकते रक्त वेदनेच्या काठावर खोल कुठेतरी आत सलणार्या काट्यावर
|
Dhruv1
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 2:15 am: |
| 
|
गोता खातो धीर खोल खोल भोवरा भोवंडीच्या गावी वेग थोडा आवरा
|
Dhruv1
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 2:17 am: |
| 
|
आयुष्य असे भोवती दिशा सार्या पोरक्या आकाशाचा पार शोधतो पंखपांगळा थवा....
|
ये बात ध्रूव.. जियो
|
Dhruv1
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 2:22 am: |
| 
|
आठवणींच्या गावामधुनी पुन्हा पुन्हा परतायाचे तुझ्या सवे जगावयाला आठवणींतच हरवायाचे
|
Shyamli
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 2:56 am: |
| 
|
काटा निघुन जातो सल तेवढा राहतो तुला आठवताना तुच सलत राहतोस!!! श्यामली
|
ध्रुव... best ... !!!!.. .. .. .. ... .. .
|
Shyamli
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 3:11 am: |
| 
|
आला वैशाख वैशाख होई धरणिचि तगमग मन तृषार्त तृषार्त कधी संपेल ही आग? श्यामली!!!
|
Giriraj
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 3:16 am: |
| 
|
क्या बात है धृव! पुन्हा कवीमध्ये आलास म्हणायचा तू!
|
Jo_s
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 3:16 am: |
| 
|
काटा काढता येतो सलही नंतर होतो कमी पण तुझ्या आठवणी? पीळ पाडतात माझ्या मनी
|
Krishnag
| |
| Tuesday, May 02, 2006 - 3:22 am: |
| 
|
सन्मी, छान!! बर्याच दिवसांनी सुरेख सुरुवात!! धृव मस्तच!!! श्यामली, सुरेख!!
|
Krishnag
| |
| Wednesday, May 03, 2006 - 12:54 am: |
| 
|
फुले शरदाचं चांदणं ग्रिष्माच्या काहिलीत तुझ्या हासण्यानं उमले भर शिशिरी वसंत
|
नाव तुझे घेता घेता मी गीत विसरलो आहे तुझी वाट पाहून पाहून मी माझ्यातच हरवलो आहे
|
का फुकाच करता काट्याकुट्यांची बात का उगीच बसता सला त्या कुरवाळीत होइल पहाट अन सरेल ही काळरात मग लागतिल सुर अन जन्मेल उद्याचे गीत
|
Shyamli
| |
| Monday, May 08, 2006 - 5:21 am: |
| 
|
सलुन सलुन सललेला काटाच आता घायाळ झाला पुरे म्हणे दु:ख आता विरह थोडा मवाळ झाला श्यामली!!!
|