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Amruta
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| Monday, September 17, 2007 - 4:26 pm: |
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मस्तच कथा.... जाम आवडली.
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Tiu
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| Monday, September 17, 2007 - 5:29 pm: |
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आवडली.. You made it short gobu, very nice! ... and they lived happily forever
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Rajya
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| Wednesday, September 19, 2007 - 9:18 am: |
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वा वा गोबु छान रे पन फार वेळाने आली कथा, तरीपण आली हेच नशीब आणि कथा सलग टाकलीस हे ही उत्तम त्या english च्या चुका टाळायचा प्रयत्न कर. *पण एक नक्की राणीची सर या साराला नाही*
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Gobu
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| Thursday, September 27, 2007 - 10:45 am: |
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मित्रहो, धन्यवाद! धन्यवाद!! कथा अपेक्षीत शेवटावर गेली हे मान्य आहे मला!
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अगं बाई गोष्ट वाचली आणि प्रतिक्रिया दिलीच नव्हती होय मी. मस्त झालेय रे गोष्ट. बोले तो एकदम झक्कास! आवडली एकदम. आणि असू दे की अपेक्षित शेवट. ही काय थ्रिलर कथा आहे का अनपेक्षित शेवट व्हायला? प्रेमकथेला दोनच शेवट असतात. एक सुखांत म्हणजे हिरो हिरविणीचे लग्न होऊन सुखाचा अंत होतो आणि दुसरा दुःखांत म्हणजे लग्न होत नाही. ते वेगवेगळ्या वाटेने जातात आणि एका चिरंतन दुःखाचा अंत होतो.
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Disha013
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| Thursday, September 27, 2007 - 5:12 pm: |
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गोबु,तुझी स्टाईल अगदी हटके आहे.मस्त जमलिये.... माणुस म्हणतो तशी हिंदी पिच्चरची स्टोरी वाटतेय. संघमित्रा, ही तुझी दुसरी प्रतिक्रिया आहे!
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Mankya
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| Friday, September 28, 2007 - 3:29 am: |
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संघमित्रा .. ' एक सुखांत म्हणजे हिरो हिरविणीचे लग्न होऊन सुखाचा अंत होतो '.. खरंच सुखाचाच अंत होत असेल पुढे ( लग्नानंतर का कुणी सुखी झालय आजवर ) माणिक !
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