अजय तुझ्या लिखाणासाठी चिमटे असा नवा बीबी सुरू करू या. मस्तच. हहपुवा. मनस्मी, >>बर्याच दिवसांनी विनोदी वाचून हसायला आलं? हं. कळलं
|
अजय, जबरीच रे भो...
|
Psg
| |
| Thursday, September 13, 2007 - 11:02 am: |
|
|
मस्त लिहिलं आहे अजय.. ट्रान्सलेट करून रामूला पाठव.. म्हणजे तरी त्याचे 'डोळे' उघडतील
|
Ajai
| |
| Thursday, September 13, 2007 - 11:12 am: |
|
|
सर्वाना प्रतिक्रियांबद्दल धन्यवाद! ---
|
Chinnu
| |
| Thursday, September 13, 2007 - 3:29 pm: |
|
|
... ... ... ...
|
Disha013
| |
| Thursday, September 13, 2007 - 6:42 pm: |
|
|
अजय,मस्त जमलेत सगळे 'टोमणे'!!
|
Storvi
| |
| Thursday, September 13, 2007 - 9:50 pm: |
|
|
ह ह पु वा! मस्तंच! बघा म्हणावं इतर ईच्छुकांना. याला म्हणतात ईनोदी लिखाण
|
Sunidhee
| |
| Friday, September 14, 2007 - 5:12 pm: |
|
|
मला अजिबात आवडले नाही. आता हे वाचुन रामुने खरच 'डोळे' बनवला तर जबाबदार कोण? मस्त आहे.
|
Milya
| |
| Saturday, September 15, 2007 - 6:48 am: |
|
|
अजय जबरी लिहिलेय ह.ह.पु.वा. मी कुणाही भगवानच्या पिताजींनांही न घाबरणारं भूत आहे!! >>> मग आता रामगोपाल वर्मा ला खुन्नस म्हणून संदीपने 'संदीप सावंत का भूत' असा सिनेमा नाही काढला म्हणजे मिळवले... अज्जुके हलकेच घे गं
|
Ajjuka
| |
| Saturday, September 15, 2007 - 9:32 am: |
|
|
नाही पण आता मी 'पुरानी दोस्ती का भूत' (यातले का हे हिMदीमधे आहे. चं या अर्थी. हे का ते असं नाही..) असा एक चित्रपट काढायच्या विचारात आहे.. ही ही ही ही
|
Ajjuka
| |
| Saturday, September 15, 2007 - 9:33 am: |
|
|
te jaude pan sagalyanni ganeshotsavakade chakkar mara ki. ajun kahich suru nahi zala tikade farasa...
|
ह. ह. पु. वा. मस्तच आहे
|