Mi_anu
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| Friday, September 14, 2007 - 3:06 am: |
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सुंदर. जमली आहे कथा. (याच्या पुढचे वाक्य प्रश्नाचे उत्तर मिळाल्यामुळे संपादित केले आहे.)..
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Maanus
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| Friday, September 14, 2007 - 3:19 am: |
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आत्याचे पुढे दरोडेखोरांत काय होणार हा विचार येतो मात्र.. िहिरीचं काळंभोर पाणी क्षणभर डहुळलं नि पुन्हा पहिल्याप्रमाणेच शांत झालं.
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Mi_anu
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| Friday, September 14, 2007 - 3:58 am: |
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ओके ओके. आता कळलं.
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Zakasrao
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| Friday, September 14, 2007 - 4:28 am: |
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सहीच जमली आहे. .. ..
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Abhijat
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| Friday, September 14, 2007 - 5:00 am: |
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सुपरमॉम, शेवट एका मृत्यूने? तुमच्या इष्टायलीत नाही बसत हे. तरीपण कथा एकदम आवडली.
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Ana_meera
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| Friday, September 14, 2007 - 5:34 am: |
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supermom नेहेमीप्रमाणे सरस कथा!
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Chetnaa
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| Friday, September 14, 2007 - 5:51 am: |
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सुपरमॉम, आवडेश एकदम.. ...
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खुपच छान आहे कथा.... अक्षरश्: सगळ डोळ्यासमोर उभ राहिल...
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Cutepraju
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| Friday, September 14, 2007 - 9:50 am: |
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वा!!!!!!!! एकदम मस्त आहे कथा!!
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छानच! .. .. ..
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Ladaki
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| Friday, September 14, 2007 - 11:56 am: |
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सुमॉ... कथा नेहमीसारखीच सुंदर....
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Maitreyee
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| Friday, September 14, 2007 - 1:53 pm: |
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सुमॉ, छान गं. तुझ्या कथांमधे तू वातावरणनिर्मिती, जागा, व्यक्ती यांची वर्णनं छान करतेस
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Amruta
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| Friday, September 14, 2007 - 2:01 pm: |
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सुमाॅ, आवडली कथा. छान आहे
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Runi
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| Friday, September 14, 2007 - 3:57 pm: |
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सुपरप्रेमळ सुमॉच्या कथेत शेवटी चक्क सिनेमातल्या सारखी हाणामारी. सुमॉ तु पण अनपेक्षीत धक्कातंत्र सुरु केलेले दिसतय
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Aashu29
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| Saturday, September 15, 2007 - 12:58 pm: |
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मस्त वाटलि कथा! सुमॉ!
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वाव सहीच...एकदम झक्कास! तुम्ही एकदम सगळ्या मराठी serials न मागे टाकलंय
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सुमॉ,छान आहे गं कथा
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Manogat
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| Monday, September 17, 2007 - 9:43 am: |
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सुमा, नेहमी सुरेख.... छान लिहिली आहेस कथा
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Jayavi
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| Monday, September 17, 2007 - 1:33 pm: |
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सुमा..... खूप खूप छान !! तुझ्या कथानकांमधे पुरुषजातीविरुद्ध विद्रोह नेहेमीच जाणवतो. तुझी "सोनसाखळी" कथा पण अशाच आशयाची होती. खूप छान फ़ुलवतेस तू कथानक
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Supermom
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| Monday, September 17, 2007 - 3:17 pm: |
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सगळ्या मित्र मैत्रिणींचे मनापासून आभार. जयू, असं नाही ग वाटत मला. उलट तू माझ्या 'नाती' , 'आधार' 'अनुभूती' या सगळ्या कथा बघशील तर माझ्या कथांमधले पुरुष हे नेहमीच समंजस, प्रेमळ आणि पत्नीला समजून घेणारे आहेत. आणि आपल्या जनरेशनच्या नवर्यांबद्दल माझं हेच मत आहे हे मी 'अनुभूती' कथेच्या प्रतिक्रियांना उत्तर देतानाच लिहिलंय. तू वाचलंस का मला माहीत नाही.
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Manjud
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| Tuesday, September 18, 2007 - 5:33 am: |
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सुमॉ, आज पूर्ण कथा वाचली. तुझ्या गोष्टिंचा शेवट नेहमी गोड असतो. त्यामुळे हा शेवट फारसा रुचला नाही. पण कथेची मांडणी, वातावरण निर्मिती आणि प्रेमळ आत्या खुप आवडलं.
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R_joshi
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| Wednesday, September 19, 2007 - 9:57 am: |
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सुपरमॉम...... खुपच सुंदर कथा. शेवटहि अगदि अपेक्षित(मला) असाच केलास. जी व्यक्ती आपल्या बायकोच्या,मुलीच्या मनाचा विचार करु शकत नाही ती व्यक्ती आपल्या बहिणीला कस माफ करेल. त्यामुळेच सरलाताईनी जीव दिला. खरच एक वेगळ्या प्रकारची गोष्ट... अगदि छानच जमली आहे.
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Jhuluuk
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| Tuesday, September 25, 2007 - 3:40 pm: |
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हाय सुमॉ, खुप आवडली कथा.. आज वाचली..
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Vishee
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| Thursday, September 27, 2007 - 6:24 pm: |
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सुपरमॉम, छान जमलेय हं कथा. जुन्या काळातील वातावरण आणि त्या अनुशंगाने संवाद छान लिहिलेत. नविन कथा आल्यावर लगेच काही माझी वाचुन होत नाही, पण आता सुमॉने दिलेली नावं शोधुन वाचणारे याच बैठकीत.
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