Abhi_
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| Thursday, March 22, 2007 - 5:52 am: |
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राहुल नेहमीप्रमाणेच मस्त!! ..
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Kranti
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| Thursday, March 22, 2007 - 4:51 pm: |
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फारच मस्त आनि थरारक
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Atul
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| Thursday, March 22, 2007 - 9:17 pm: |
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राहुल, नेहमी प्रमाणे मस्तच. आजुन येउ देत.
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Yog
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| Friday, March 23, 2007 - 3:39 am: |
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राहुल शेठ, नाही आवडली.. तपशिलात repeatation झालय. तुझ्या नेहेमिच्या मोजक्या मार्मिक पन्चपेक्षा जरा शब्दाळ वाटली.. असो. नविन वर्षात लिहायला घेतले असलेस तर आम्हा वाचकान्ची मौज आहे. अजून येवू देत.
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R_joshi
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| Friday, March 23, 2007 - 9:00 am: |
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राहुल कथेची जडणघडण वेगळ्या पद्धतिची आहे. कथा रहस्यमय पद्धतीने लिहिली गेली असली,तरी कथेतिल रहस्य ऊलगडले गेले आहे असे वाटत नाहि.
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Jhuluuk
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| Friday, March 23, 2007 - 9:34 am: |
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खुप आवडली... थरारक आहे!!
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राहुल , अप्रतिम . मला खूपच आवडली .
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Kandapohe
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| Wednesday, March 28, 2007 - 10:48 am: |
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छान रे. पण तूझ्या आधीच्या कथांच्या मनाने जरा डावी वाटली.
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Chinnu
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| Wednesday, March 28, 2007 - 1:27 pm: |
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राहुला सहीच! केप्या तुला मोदक नाहीत
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Storvi
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| Wednesday, March 28, 2007 - 5:07 pm: |
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मस्त कथा.. लय भारी.. राहुल तुला खिळवुन ठेवायला मस्त जमतं
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Maasture
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| Thursday, March 29, 2007 - 1:24 pm: |
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कथाबीज एकदम भन्नाटच आहे. पण हाताळणित जरा तोचतोच पना आला आहे. वर अजुन पन कुनितरि म्हनले आहे तसे. अजून सफाइदार्पने लिहिता आली असती. शक्य झाल्यास पुन्हा लिहुण बघा, कारन कथेत दम आहे, शैली पन चाम्गली आहे. थोडे विस्तारात गंडले आहे. तेवढे जमल्यास सुधारून घेतले तर एकदम फ़स्टक्लास कथा म्हनता येईल.
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सर्व प्रतिक्रियांचे पुन्हा एकदा मन:पूर्वक आभार !
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Sneha21
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| Friday, March 30, 2007 - 3:15 pm: |
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फ़ारच सुन्दर मज आलि वाचुन
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