|
Waist of Time
.. .. .. ..
|
वेळेची कंबर? हे काय असतं बुवा?
|
>>>>. आता मैत्रीतुन भांडण BB काढु. भाण्डणातून मैत्री झाली मैत्रीतून भाण्डण झाल पण भाण्डणातून भाण्डण बघायच असेल तर या माझ्यामागोमाग! अर्थात कुठ ते सान्गायलाच हव का???????? DDDSGRDDD 
|
Meenu
| |
| Friday, March 14, 2008 - 7:38 am: |
| 
|
आणि भांडणातून भांडण या विषयातले तज्ञ कोण ... अर्थात कोण ते सांगायलाच हवं का ...? DDD LBTB DDD 
|
खी खी खी खी मीनू
या रोखुन बघणार्या मारक्या तिघी कोण.... अर्थात कोण ते सान्गायलाच हव का????? DDD |\/|_|>_$ &^*(&^^$%$%!$##!@)_*8 DDD तळटीप्: एसवीसन २००६ मधे काढलेला हा फोटो आज असा "कामी" येणार होता तर! हा फोटो काढताना या म्हशीन्नी इतका त्रास दिला होता की सान्गता सोय नाही! हा फोटो मिळवायला मला तब्बल एक तास तिष्ठायला लागल! (तरी शेवटचीन लाजुन मुन्डी थोडी खाली झुकवलीनच!) ऍडमिनचे खास आभार १०० केबीची सोय केल्याबद्दल 
|
Asami
| |
| Friday, March 14, 2008 - 12:53 pm: |
| 
|
हा फोटो काढताना या म्हशीन्नी इतका त्रास दिला होता की सान्गता सोय नाही! हा फोटो मिळवायला मला तब्बल एक तास तिष्ठायला लागल! >>म्हशींच्या पाठी लागलेला रेडा समजू शकतो पण माणसासारखा माणूस पण
|
Tiu
| |
| Friday, March 14, 2008 - 6:34 pm: |
| 
|
या रोखुन बघणार्या मारक्या तिघी कोण.... अर्थात कोण ते सान्गायलाच हव का????? >>> आमच्या डोक्यात तीन नावं आहेत. आमच्यासाठी तर त्याच तिघी आहेत...:-)
|
अर्ज़ किया है... ("इर्शाद!! इर्शाद!!") "तू मेरे दिल में कुछ इस तरह समायी है.. ("वाह, क्या बात है!") तू मेरे दिल में कुछ इस तरह समायी है.. ("सुभान अल्लाह!!") जैसे... जैसे बाजरे के खेत में भैंस घुस आयी है!!" (टाळ्या!)
|
Chyayla
| |
| Wednesday, March 19, 2008 - 8:42 am: |
| 
|
योग्या, बाजरीच्या शेतात म्हैस घुसो नाहीतर रेडा घुसो, पण या बाफ मधे म्हशी कशा काय घुसल्यात? लिंबुटींबु तुमच्या मारक्या म्हशीन्ना आवरा हो नाहीतर यावरुनच भांडण व्हायच, पुन्हा म्हणाल... मेरे भैस को डंडा क्यो मारा..
|
Zakki
| |
| Wednesday, March 19, 2008 - 12:13 pm: |
| 
|
अहो च्यायला, त्याचे असे झाले की 'अग अग म्हशी, मला कुठे नेशी?' मग ती नेईल तिथे जायचे!
|
Chyayla
| |
| Thursday, March 20, 2008 - 3:09 pm: |
| 
|
अहो झक्की च्यायलाला अहो जाहो तरी कस म्हणवत तुम्हाला
|
Zakki
| |
| Friday, March 21, 2008 - 11:10 am: |
| 
|
म्हणवत नाही. म्हणून लिहीतो.
|
|
चोखंदळ ग्राहक |
 |
महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
|
व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
|
पांढर्यावरचे काळे |
|
गावातल्या गावात |
|
तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
|
आरोह अवरोह |
|
शुभंकरोती कल्याणम् |
|
विखुरलेले मोती |
|
|
|
हितगुज दिवाळी अंक २००७
|
 |
|