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Santoshd
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| Sunday, November 25, 2007 - 1:05 am: |
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तुमचा अनुभव ईथे लिहीण्याजोगा झाल्यावर लिहीणार वाटत? 
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ईथ लीहन्याजोगा म्हनजे कसा ते पहील्यान्दा सान्ग मग लिहतो
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Rajya
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| Monday, November 26, 2007 - 5:04 am: |
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हाय प्रशांत लिही रे अनुभव त्यात आज उद्या काय करायचं
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Chchotu
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| Monday, November 26, 2007 - 8:22 am: |
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म्हनजे अनुभव आधी लिही आणि मग तो अनुभवता आला तर बघ.
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राज्या, छोटु, सन्तोश अरे लीहायला काही हरकत नाही पान वेळ मह त्वाचा.................एक ओळ लीहायला १५ मिनिटे लागतात................
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Radha_t
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| Tuesday, November 27, 2007 - 10:44 am: |
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पूर्वी मी इथे माझी प्रेमकथा टाकली होती त्यात असल काही लिहील नव्हत. live love story लिहिली तेच धाडस करून. .. असो त्यात नसलेला एक kiss चा किस्सा आम्हा दोघांमधे commitment झाल्यावर पहिल्यांदा जेव्हा एशियाड ने पुण्याला चाललो होतो तेव्हाची गोष्ट. तेव्हा बोगद्यात दिवे नसायचे. express highway होत होता का अजून पूर्ण झाला नव्हता का बस तिथून जात नव्हती असच काही तरी... साधारण ७-८ वर्शांपूर्वीची गोष्ट. शेजारी बसल्या बसल्या माझा हात हातात घे, या न त्या कारणाने गालाल हात लावणे, गुदगुल्या करणे असे त्याचे प्रकार चालूच होते. त्यातच बोगदा आला अंधार झाला त्यासरशी त्याने मानेभोवती हात घालून मला ओढले आणि काही कळायच्या आतच ओठ ओठांवर घट्ट दाबले. मी हळूच उं केल. पण तोंड उघडायला चान्सच मिळाला नाही. मला तर खूपच लाज वाटली. चार चौघात अस कुणी पाहिल तर काय. पण नंतर हळू हळु मजा येऊ लागली. बोगदा येताना दिसला की तयार निरजा तू म्हणतेस तस त्यानंतर मला खरच डाॅन झाल्यासारख वाटत होत.
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Rajya
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| Wednesday, November 28, 2007 - 4:59 am: |
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बोगदा येताना दिसला की तयार   मस्त राधा आता मी पण प्रयत्न करेन पण आता बोगद्यात दिवे असतात गं. तरी बघतो जमलं तर जमलं
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Nkashi
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| Wednesday, November 28, 2007 - 9:08 am: |
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आई शपथ !!! ह. ह. पु. वा. मी imagne करते आहे.... 
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राधा, खरच ह. ह. पु. वा. वाचताना imagine करत होते
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Rajya
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| Wednesday, November 28, 2007 - 10:42 am: |
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काशी, रागिनी नुस्ता imagine नका करु
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Nkashi
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| Wednesday, November 28, 2007 - 12:12 pm: |
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इश्य !!! काहितरी काय बाप रे, माझ्या लग्नातसुद्धा इतकी लाजली नसेन...मान मोडली माझी 
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Maanus
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| Tuesday, April 01, 2008 - 3:03 am: |
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so... anything new here?
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Asami
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| Tuesday, April 01, 2008 - 3:23 pm: |
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अरे तुला लिहायचे अस्ले तर लिहून टाक. आढेवेढे कशाला घेतोयस ?
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Farend
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| Tuesday, April 01, 2008 - 4:46 pm: |
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असामी, कदाचित त्याने जे लिहिलय तेच त्याचे मत असेल
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Maanus
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| Wednesday, April 02, 2008 - 12:02 am: |
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असे काही नाही रे. सध्या अनुभवांच्या फलकावर चित्रपटच खुप दिसतायत, म्हणुन इथे संदेश टाकला. दुसरे देखील बातमी फलक आहेत हे सांगायला.
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चित्रपटांत हीरो आणि 'हिरवीण' च्या नाकात एक-दोन मिमि चं अंतर राह्यलं की आम्ही म्हणायचो- "आक्च्छी!!"
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Tonaga
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| Wednesday, April 02, 2008 - 5:53 am: |
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आम्ही म्हणायचे 'डॉक्टरसाब, इनकी साँसोमे बदबू है!"
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Tonaga
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| Wednesday, April 02, 2008 - 5:55 am: |
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मस्त राधा आता मी पण प्रयत्न करेन पण आता बोगद्यात दिवे असतात गं. तरी बघतो जमलं तर जमलं >>>>>अशा वेळी आपण डोळे मिटून घ्यायचे म्हणजे लोकाना काही दिसत नाही
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Athak
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| Wednesday, April 02, 2008 - 5:59 am: |
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पिते दुध डोळे मिटुनी जात मांजराची मनी चोरट्यांच्या का रे भिती चांदण्याची सरावल्या हातांनाही कंप का सुटावा प्रयत्न चालु द्यावा राज्या प्रयत्न चालु द्यावा
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Asami
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| Wednesday, April 02, 2008 - 12:11 pm: |
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सरावल्या हातांनाही कंप का सुटावा >> हातांना अथकराव ?
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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