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Lampan
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| Wednesday, May 09, 2007 - 4:23 am: |
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धुमकेतु बरोबर बोललास .. दिनेश तुम्ही पावसळ्यात या परत जाउ ... बी thanks a lot
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Sakhi_d
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| Wednesday, May 09, 2007 - 6:36 am: |
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लंपन खुप सुरेख लिहिले आहेस.... खरच अशी एकट्याने फ़िरण्यात जी मजा असतेना ती काही औरच.... आणी तेही बाइकवरुन... मग तर दुधात साखर....
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Zakasrao
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| Thursday, May 10, 2007 - 3:19 am: |
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आमची मागची ट्रिप avenger वर झाली ...>>>>अरे हो ना मी लिन्कवरील ते फ़ोटो बघुनही चुकुन परत तुला सल्ल दिला. असो.
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Giriraj
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| Thursday, May 10, 2007 - 11:35 am: |
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वाह! लंपन,पल्सार आणि अवेन्जर या दोघि माझ्या आवडत्या गाड्या! बुलेट घ्यायचा विचार खूप करतो पण ज्यवेळेस घेईन तेव्हा अवेन्जर घेईन असेच वातते... हाताळायला खूप सोप्या. यामाहा RX 100/135 तं अजूनच सोपी. तुझ्या भटकंतीबद्दल वाचून मलाही फ़िरावसं वाटातंय.. खूप मजा येते असे भटकण्यात!
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Ammi
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| Tuesday, May 29, 2007 - 4:29 pm: |
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lampan kahi watata ka re ekta jayala..aamhi kaay meloy ka....aayla kamal aahe tuzi...phone tari takayacha ek...mi don payawar tayar hoto...kaay mitra tumhi.....ccccchhheeeee....
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Lampan
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| Wednesday, May 30, 2007 - 3:51 am: |
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अरे .. अमोल गुर्जी माफ़ी असावी !! परत नाही , हा गुन्हा घडणे नाही
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Ammi
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| Wednesday, May 30, 2007 - 12:34 pm: |
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pudhcha plan kaaay aahe....na sangta kalty maru naka....lai shivya zodawya aasa watla hota...bhetlyawar aahetach mhana tashya...pan ek matra khara ki prawas warnan chaan jamla aahe... gmail war ek mail tak...no. sahit...
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Excellent writeup!! Maja aali vachun.
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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