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Giriraj
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| Monday, August 08, 2005 - 2:00 pm: |
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vaa vaa² purMdr baxaIsa... nakÜ nakÜ... purMdravarcyaa AakaXyaatlyaa baapakDo jaaNaara ijanaa sap`oma²
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Yog
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| Monday, August 08, 2005 - 6:01 pm: |
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vaah ² ixap`a is back tÜ maurmbaa tyaar zova gaÊ puNyaat BaoT hÜla lavakrca this weekend will be in india !
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Bolkevada
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| Sunday, September 11, 2005 - 6:41 pm: |
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kXaI Aahosa tU ixap`a ..BaarIca AavaDlaI
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Chiutaai
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| Friday, February 10, 2006 - 6:11 pm: |
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क्षिप्रा, फ़ारच सुंदर आहेत तुझा कविता, वाढ्त्या वयाबरोबर आणि माझ माझ आकाश खूपच आवडल्या.
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Bhagya
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| Wednesday, April 04, 2007 - 6:27 am: |
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वा! क्षिप्रा, आज पहिल्यांदा इथे आलेय....मला तुझ्यासारख्याच तुझ्या कविता छान वाटतायत. मी GTG चा वृतांत टाकलाय... वाचशील हं! /hitguj/messages/34/124353.html?1175665856 आणि पुस्तकाबद्दल तर अनेक धन्स! मी या वीकेंडला वाचून संपवणार आहे. पण जे वाचतेय त्याच्यात किती कष्ट सुधीर फ़डकेंसारख्या प्रतिभावान कलाकाराला काढावे लागले, याचं अगदी करूण वर्णन आहे.
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज गणेशोत्सव २००६ |
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