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Dhruv1
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| Wednesday, March 30, 2005 - 10:32 am: |
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RMD Kup Cana ... ²²
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Rmd
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| Monday, April 04, 2005 - 10:21 am: |
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dhanyawaad sarvanna! DW, PK: takrarichi nond ghetali ahe. aani lagech navi kavita post keli ahe!
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Deepti_w
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| Monday, April 04, 2005 - 9:44 pm: |
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god lihites RMD. navyane sangayala nako.
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Hems
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| Monday, April 04, 2005 - 10:49 pm: |
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" AatUna ]savat rhayacaM " ... Canaca²
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Bee
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| Tuesday, May 09, 2006 - 9:19 am: |
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कविता मन हेलकावून गेली..
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Milindaa
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| Tuesday, May 09, 2006 - 10:34 am: |
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कविता मन हेलकावून गेली.. <<< कोणत्या दिशेला ?
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>>>> कोणत्या दिशेला ? दॅट डिपेण्ड्स ऑन.. मन शरीरात होत की बाहेर होत, उभ होत की आडव होत की उताण होत की पालथ होत की शिर्शासनात होत की उकिडव होत की पळत होत की स्थिर होत यावर! (पीजेसम्राट कुठला) DDD बी, हेलकावुन की हेलावुन गेली अस म्हणायच हे तुला? आरएमडी, छान हे ग तुझी कविता... विशेशतः शेवटच वाक्य! ताणलेला क्षण! असे क्षण माणसाच्या एकुण आयुष्यात फारच कमी येत असावेत, कित्येकान्च्या तर तेही नशिबात नसते! ![:-)](/hitguj/clipart/happy.gif)
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rmd.....classsssssss मार डाला!!! दिल के छालोंको कोई शायरी कहे तो पर्वा नही; दर्द तो तब होता है जब कोई कहता है वाह व्वा! -चिंगी
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Bee
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| Wednesday, May 10, 2006 - 10:42 am: |
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होय रे लिम्बु मला मन हेलावून गेले असेच म्हणावयाचे होते. बरे केलेस योग्य वेळी सांगितलेस
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Rmd
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| Wednesday, May 10, 2006 - 11:25 am: |
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dhanyawaad dhanyawaad!! ithe parat yeun malaahi khupach chhan vatala.
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RMD मस्त आहे ... का नाही टाकलीस कविता बीबी वर ? अजूनही टाक की ... खरंच छान आहे
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Badbadi
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| Tuesday, May 23, 2006 - 11:23 am: |
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रूपा, मांडणी खूप छान आहे.. पण इतका नकारात्मक सूर का आहे कवितेचा? तुझ्या बर्याच कवितांमध्ये मला हे जाणवतं... अह्सेcच एक खूप पूर्वी "वाळवी" नावाची कविता टाकली होतीस.. काही उल्हसित, प्रसन्न लिहि ना...
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Rmd
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| Tuesday, May 23, 2006 - 11:25 am: |
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वैभव्: असा बहुधा general rule आहे की तुम्हाला personal BB असेल तर तुम्ही common BB वर शक्यतो लिहु नये. म्हणून इथे लिहीली.
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Bee
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| Tuesday, May 23, 2006 - 11:27 am: |
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RMD- कविता साधीच आहे पण खूप छान लिहिली आहेस.. त्यात तू नेहमीच सरस असतेस. मलाही ही कविता खूपच निराश वाटली.. पण होते असे कधी कधी.. पुन्हा उल्हासित होशीलच कवितेत
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Giriraj
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| Tuesday, May 23, 2006 - 11:31 am: |
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मी कुणाची नव्हते कधी अन माझं असं कुणी नव्हतं लोकांनी मात्रं माझं नाव कुणाकुणाशी जोडलं आहे >>>>> वाह! आणि अवखळ हसू खूपच आवडली! जुन्याबद्दल बोलायचं तर 'पहाट' मला खूपच आवडते!
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Jayavi
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| Tuesday, May 23, 2006 - 2:04 pm: |
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रूपा, आजच तुझ्या घरात डोकावले. काय लिहीतेस गं तू! मान गये यार! आपण तर तुझ्या कवितेवर फ़िदा
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Avikumar
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| Tuesday, May 23, 2006 - 2:37 pm: |
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रुपा, अप्रतिम! केवळ अप्रतिम!!! आणखी काय लिहु!
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज गणेशोत्सव २००६ |
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