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Devdattag
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| Saturday, November 26, 2005 - 7:53 am: |
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शान्त सन्ध्येचा अथान्ग सागर सुवर्ण रुपेरी सुन्दर चादर तू ब्रम्ह की आहेस ब्राम्हण सान्ग साज की आहेस साजण स्पर्शून जाति मज गात्रान्ना सहस्त्र कर ते विहारतान्ना शन्ख शिम्पले असन्ख्य मोती जराजरान्चे सगेसोबती ह्या वाळूतील शिल्पे अगणित सुख स्वप्ने अनन्त अप्रणित अश्रु प्राशिले त्वया सकळिक कर हे जुळती नसे आगळिक
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Ninavi
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| Sunday, November 27, 2005 - 11:12 pm: |
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गिरी, याला म्हणतात 'आयजीच्या जीवावर .....' ! शो. ना. हो !
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Sarang23
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| Friday, December 02, 2005 - 1:06 am: |
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आता इथे चित्र कसे टाकायचे हे कोणी मला सांगेल का?
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Milindaa
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| Friday, December 02, 2005 - 7:21 am: |
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Sarang, please refer to this post admin's post
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Sarang23
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| Friday, December 02, 2005 - 10:46 pm: |
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So thanks Milind. But approximately how much time will it take?
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