तिच्या घरासमोरून जाताना पाऊस आला जोरात मला पावसात भिजताना पाहून तिची आई म्हणे,"ये आमच्या घरात" श्री
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आज तुझ्या आठवणीत मी एक एक क्षण, विसरत आहे विसरते क्षण पसरत्या आठवणी सारं काही तुझंच आहे तुझंच आहे
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R_joshi
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| Thursday, January 18, 2007 - 6:41 am: |
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वा!!! झुळुक बहरु दे अशिच
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Mankya
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| Thursday, January 18, 2007 - 10:14 am: |
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धन्यवाद तुशार ! प्रिति तुझी ईच्छा तिच माझीही ! मोकळे नभ घेऊन रात्र अंगणी आली कुशीत माझ्या पाहता तुला लाजुन चांदण्यात न्हाली ! माणिक !
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Mankya
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| Thursday, January 18, 2007 - 10:17 am: |
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कुशीत माझ्या तु सखे अन चंद्र खिडकितून डोकावतो माझी त्याबद्द्ल तक्रार नाही पण चोंबडा प्राजक्तही सोकावतो ! माणिक !
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Mankya
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| Thursday, January 18, 2007 - 1:09 pm: |
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लग्नात लाजा होमाच्या अगोदर एक विधि असतो, त्याचाच आशय धरुन मी मोहरहीत पुरुषतत्व तु मोह घालणारी प्रकृति मी होईन सामावुन घेणारे आकाश तु हो सदा स्थिर पृथ्वी ! माणिक !
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Deshi
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| Thursday, January 18, 2007 - 2:20 pm: |
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बापरे! .. ... ..
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Anupama
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| Thursday, January 18, 2007 - 5:45 pm: |
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हे 'मोहरहीत पुरुषतत्व' समजायला खुपच वेळ लागला! ~D
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Meenu
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| Thursday, January 18, 2007 - 8:45 pm: |
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हे राम .. ..!!!
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Princess
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| Friday, January 19, 2007 - 12:57 am: |
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मला जे काही सुचेल मी इथेच लिहिन, कागद कलम घेण्याइतकी देखील नसे माझ्या मनाला चैन... लिहिले ते मी का तपासुन पाहावे प्रभाते मनी राम चिंतीत जावे थोडी गडबड आहे पण चालुन जाइल असे वाटते
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Kiru
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| Friday, January 19, 2007 - 1:07 am: |
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हं.. तसं सध्या इथे काहीही चालतय.. हल्ली श्रीखंडही खायची भिती वाटते... चारोळ्या असलेला.
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Milya
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| Friday, January 19, 2007 - 1:18 am: |
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किरू : श्रीखंड खायलाही आजकाल वाटते मला भिती झुळकेवर यायची सुद्धा होत नाही छाती इथल्या अनेक झुळका बघता ही पण चालेल बहुतेक :-)
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Princess
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| Friday, January 19, 2007 - 1:22 am: |
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ते म्हणतात हिंदी पिक्चर बघताना डोके बाजुला ठेवावे, मायबोलीवरच्या झुळुका वाचताना याचे काय बरे करावे?
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Shyamli
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| Friday, January 19, 2007 - 1:26 am: |
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अरे व्वा मील्या आला का? चालेल काय पळेल, लगे रहो किरू
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Kiru
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| Friday, January 19, 2007 - 1:26 am: |
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मिल्या >>>>>... ही पण चालेल बहुतेक चालेल!! अरे फ़ास्ट चालेल म्हण..
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Meenu
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| Friday, January 19, 2007 - 1:51 am: |
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किरु, मिल्या, princess आत्ता कसं झुळुकेवर आल्याचं सार्थक झालं माझी पण एखादी झुळुक चालवुन घ्या लोकहो ईथले लोकं अन्याय करतात न(व)कवींना टोचुन बोलतात मी लिहीलेल्या झुळुकेला चारोळी म्हणतात ....
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Smi_dod
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| Friday, January 19, 2007 - 1:53 am: |
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मिल्या किरु, मिल्या आज झुळुकेवर येउन सार्थक झाले.
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Meenu
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| Friday, January 19, 2007 - 1:55 am: |
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रणरणत्या उन्हात पाहुन माझी सावली अनवाणीच पायांनी ती छत्री घेऊन धावली मी म्हणलं छत्री कशाला ..? टोपीही चालेल .. ती म्हणाली लोकं म्हणतील की मी तुला टोपी घातली ..
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Smi_dod
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| Friday, January 19, 2007 - 2:05 am: |
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समजतात सगळे ईथे शहाणे स्वताःला आपल्या चारोळ्याना झुळुक म्हणतात आणि माझ्या... पाचोळा म्हणतात पण डगमगणार नाही जरा ही नीष्टेने टाकतच रहणार टाकता टकता कधी तरी मी हा बी बी उडवणार
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Krishnag
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| Friday, January 19, 2007 - 2:07 am: |
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किरु, मिल्या, चारोळ्यानी आरोळ्यानी शिरी - खंड शत झाले मधुमक्षिकेच्या गुंजारवावर रातकिड्यांचे सावट आले
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