R_joshi
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| Monday, June 19, 2006 - 1:11 am: |
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मोरपिसारा आठवणिचा आज असा काही फुलला श्रावणातला मेघ जणू अचानकच बरसला प्रिति
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Krishnag
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| Monday, June 19, 2006 - 1:23 am: |
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सर आली पावसाची तना भिजवूनी गेली परी धग आठवांची मना पोळवूनी गेली
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Jo_s
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| Monday, June 19, 2006 - 2:09 am: |
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काहीतरी चुकतय वाटत होतं राहून राहून तू भेटताच मनात लगेच कालची सर आली धाऊन
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R_joshi
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| Monday, June 19, 2006 - 2:14 am: |
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क्रिश, जो सुंदरच क्रिश तुला पहिल्यांदाच पाहतेय इथे. खरच छान लिहिले आहेस
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R_joshi
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| Monday, June 19, 2006 - 2:18 am: |
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वाट चुकायची नव्हती मी ती मुद्दाम चुकले आठवणिसंगे तुझ्या जगायचे नव्हते तरी त्यांच्यासंगेच जगत राहिले प्रिति
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Meenu
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| Monday, June 19, 2006 - 2:23 am: |
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चांदणच होत बरसत काल ओंजळीत पकडायला त्याला प्रयत्नांची केली कमाल ओंजळ राहिली रीकामीच पण तरीही आली खुप धमाल
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Meenu
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| Monday, June 19, 2006 - 2:30 am: |
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निसर्गाच होतं ते भरभरुन देणं .... प्रत्येक देणं येतं होवुन सौंदर्याचं लेणं .....
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काल रात्री पावसात माझं घर वाहून गेलं ते आवरता आवरता पावसाला वेलकम म्हणायचं राहून गेलं
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Shyamli
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| Monday, June 19, 2006 - 4:22 am: |
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अहा.... सुधीर क्रीश.. मीनू धमाल.. प्रीती..क्रिश आणि jo_s(sudhir) ईथले मातब्बर खेळाडु आहेत ग आपणच नवीन आहोत ईथे..बाकी तू छान लिहीतेस हं लीहीत रहा.. देवा आता म्हण कि.... उद्या येईल बघ परत
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ते पत्रच पावसाने ठेवले होते मागे जरा बघ तुझी अन पावसाची वागण्याची सारखी तर्हा
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ठरवले पत्रास त्या आता नाहिच वाचणे तसे वाचले नव्हते आधीही अश्रुंचे डोळ्यांत होते साचणे
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R_joshi
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| Monday, June 19, 2006 - 5:00 am: |
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पत्र तुझे आल्यावर मन माझे हेलावते का अश्रुंसंगे शब्द हि वाहुन जावेत असे मला वाटते का..... प्रिति
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R_joshi
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| Monday, June 19, 2006 - 5:03 am: |
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शब्द तुझ्या पत्रातले अश्रु बनुन माझ्या डोळ्यात उभे राहिले असेच का ते तुझ्या हातांनी लिहिले गेले
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Kaviash
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| Monday, June 19, 2006 - 5:12 am: |
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बन्द पापण्यातले स्वप्न तुला पाहताच गवसले तुला शोधता शोधता मीच हरवून बसले.
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R_joshi
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| Monday, June 19, 2006 - 5:31 am: |
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तुला हरवुन बसण्याचि भिती मनात होती दाटली म्हणुणच तुला मी कधीही आपलिशी नाहि वाटली प्रिति
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Kanishka
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| Monday, June 19, 2006 - 8:06 am: |
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तुझ्या आठ्वणिच विश्व नेहमी माझ्या मनाच्या जवळ असत कारण माझ अस्तित्व शोधायाला मला त्या विश्वातुनच जाव लागत
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स्मरणे तुझी सभोती हृदयात आठवे मग काय आठवावे हे ही न आठवे
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Antya
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| Monday, June 19, 2006 - 12:19 pm: |
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रात्रंदिन टिव्ही तापे तापलो रामराया फीफाने फेफरे तापले तापली ही काया!
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Aavli
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| Tuesday, June 20, 2006 - 1:07 am: |
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कशाला दादा तु वेडयासारखे करतो..... काम धंदा सोडुन टिव्ही समोर मरतो..... क्षमस्व अनंता..........
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Maharaj
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| Tuesday, June 20, 2006 - 1:31 am: |
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राम राम मंडळी मी नविन मायबोलिकर समद्याक माजा नमस्कार असा
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