R_joshi
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| Thursday, June 08, 2006 - 2:29 am: |
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तु माझा मी तुझी हे शब्द किती फोल तु दिलेल्या जख्मांची मनात अजुन आहे ओल प्रिति
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तू माझा मी तुझी ही वीण असे जरतारी सुख दुःखाच्या धाग्यांची ही किमया आहे सारी तुषार जोशी, नागपूर
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Jo_s
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| Friday, June 09, 2006 - 1:58 am: |
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स्वयंपाकातल्या मिठा इतक्याच काढाव्या आठवणी अति झाल्या तर होइ खारट अजीबात नसता अळणी सुधीर
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Jo_s
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| Friday, June 09, 2006 - 2:02 am: |
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नको गुंफू उगाच आठवणींची जाळी पुढे पहा आयुष्यात काय लिहीलय भाळी सुधीर
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Meenu
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| Friday, June 09, 2006 - 3:13 am: |
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अति झाल्या तर होइ खारट अजीबात नसता अळणी सुधीर सुंदर फार छान लिहीलत .....
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R_joshi
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| Friday, June 09, 2006 - 3:42 am: |
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थेंब दवाचे गोळा करताना तुझिच आठवण येते हातात येण्याआधिच दव तुझ्यासारखेच निसटुन जाते प्रिति.
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R_joshi
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| Friday, June 09, 2006 - 3:46 am: |
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सुधिर आठवणिचि चव चाखावि लागत नाही ती ओठांवर रेंगाळत असते तु जवळ नसताना हि ती माझ्या सोबत असते. प्रिति.
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कल्लोळाचा ऊ:शाप मागतो पौर्णिमेचा हा किनारा लाट होऊन बघ तर कधी खेळ हा नि:शब्द सारा जास्वन्द...
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प्रिति, छानच गो! सुधिर, keep it up
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Meenu
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| Friday, June 09, 2006 - 4:41 am: |
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हाय जा बर्याच दिवसांनी दिसलास इकडे ...
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Meenu
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| Friday, June 09, 2006 - 4:52 am: |
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सरणारच होता दिवस जो सरला तो .. कडु गोड आठव काही ठेवुनिया गेला तो .. नव्या आजच्या दिनाचे चल करु या स्वागत कडु ठेउन उराशी गोड सर्वांना वाटत ...
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प्रिती मस्तच गो जास्वंद, मीनु नेहमीप्रमाणेच छान...
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Meenu
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| Friday, June 09, 2006 - 4:58 am: |
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किती दिवसांनी आज नवी पालवी फुटली त्या रुक्ष खोडाला सांगतेय का मला तुही थोडा धीर धर वेळ लागतो पालवायला
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Meenu
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| Friday, June 09, 2006 - 5:05 am: |
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आई मला तुझ्यशीच गं लग्न करायचं तु नाही कधीसुध्दा म्हातारी व्हायचं रोज तो नविन काही बोलत राहतो निखळ आनंद वाटत राहतो
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Bgovekar
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| Friday, June 09, 2006 - 5:07 am: |
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प्रिती अगो मस्तच! तुषार खुप दिवसांनी पाहील तुला. प्रितीला खुप छान उत्तर दिलस. आवडलं बघ.
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पौर्णिमेचा चंद्र, नभात अवघडला, तेव्हाच माझा श्वास, तुझ्या श्वासांत गुंतला... रुप...
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R_joshi
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| Saturday, June 10, 2006 - 1:44 am: |
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आज नभातले तारे जणु माझ्यासाठिच चमकतात तुझ्या माझ्या प्रेमाच गोड गुपित ते मला सांगतात प्रिति.
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R_joshi
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| Saturday, June 10, 2006 - 1:51 am: |
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तुषार सुख दु:खाचे वस्त्र जरतारी नाहि विणले जात एकट्याने आज मला अवचितच कळले कारण तुझ्या जाण्याचे प्रिति
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Aavli
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| Saturday, June 10, 2006 - 2:47 am: |
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आकाशातले ग्रह तारे सारेच वेठीस धरतात ज्योतिषी सुद्धा त्याविना बोगस भाकित करतात प्रेम प्रेमिका सारेच चन्द्रावरुन फिरतात बिचारे शेतकरी मात्र सुर्य ज्वाळेने मरतात कशाल बाबानो तुम्ही, अवकाशाला छेड्ता इतक्या उन्चावरील तारे अकलेने तोड्ता.
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Jyotip
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| Saturday, June 10, 2006 - 3:18 am: |
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aavli मस्त लिहिल आहेस.. अकलेचे तारे 
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