अजय, कल्पना छान आहे !
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A_b_h_i
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| Wednesday, May 03, 2006 - 2:59 am: |
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अजय सही लिहिलयस रे!!
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Psg
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| Wednesday, May 03, 2006 - 3:19 am: |
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ही ही... छान लिहिले आहे. इथे लिहित नसलास तरी ROM मधे सर्वांवर बारीक लक्ष ठेवून असतोस तर!
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Tanya
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| Wednesday, May 03, 2006 - 4:49 am: |
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अजय.... एकदम सही लिहिलस  
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अजय...   
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अजय एकदम सही लिहिल आहेस रे... 
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Aj_onnet
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| Wednesday, May 03, 2006 - 7:53 am: |
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सर्वांचे मनःपूर्वक आभार. ह्या कथेतील ती व्यक्ती कोणी particular 'तो' किंवा 'ती' नाही. मायबोलीवर (बहुधा ) असे बरेच जण किंवा जणी आढळतील.
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Smi_dod
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| Wednesday, May 03, 2006 - 11:29 pm: |
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नमस्कार अजय, खुपच छान.. अगदी हुबेहुब वर्णन.. मस्तच
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अजय, जबर्या रे भो.. फ़ुल टु hhpv
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>>>मायबोलीवर (बहुधा ) असे बरेच जण किंवा जणी आढळतील. अजय... खरयं जबरदस्त कल्पना
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Kashi
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| Tuesday, May 09, 2006 - 1:49 am: |
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ajay...sahi..maza aali vachun..kalpana ekdam sahi 
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Meenu
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| Tuesday, May 09, 2006 - 2:08 am: |
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मस्त रे मजा आली अगदि... वाचताना...
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अजय सहीच लिहीले आहेस रे. संदर्भ पण माहीत असल्याने आणखी मजा आली. 
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Pha
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| Monday, May 29, 2006 - 5:36 am: |
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सही रे अजय!
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