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Robeenhood
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| Wednesday, November 10, 2004 - 3:06 am: |
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p`ÝZ%vaI inaja XaOXavaasa japNao ha baaNaa kivacaa Asao.... AamacyaakDcao kahI KvaT laÜk %yaalaa iXangao maÜDUna vaasarat iXarNao Asao mhNatat .. mhNaÜt baapDo.
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mala savarkaranchi "sagara pran talamala .... " hya kaviteche lyrics have aahe milalyas aabhari aahe shardul
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Palas
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| Sunday, May 11, 2008 - 8:20 pm: |
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जयदेव जयदेव जयजय शिवराया | या या अनन्यशरणा आर्या तारा या || आर्यांच्या देशावर म्लेंछाचा घाला | आला आला सावध हो शिव भुपाळा संकटीता भुमाता दे तुज हा केला | करुणारव भेदुन तव हृदय न का गेला श्री जगदंबा जेस्तव शुंभादीक भक्षी | दशमुख मर्दुनी जी श्री रघुवर संरक्षी ती पुता भुमाता म्लेंछाही छळता | तुजवीण शिवराया तिज कोण दुजा त्राता त्रस्त अम्ही, दीन अम्ही, शरण तुला आलो | परवशतेच्या पाशी मरणोन्मुख झालो साधुपरित्राणा या दुष्कृतिनाशा या | भगवन भगवदगिता सार्थ कराया या
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Palas
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| Sunday, May 11, 2008 - 8:32 pm: |
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वरील कविता सावरकरांनी फर्ग्युसन मध्ये लिहिली, साल १९०२. त्यावेळी वसतीगृहात ही कवीता रोज गायली जायची
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Dineshvs
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| Monday, May 12, 2008 - 2:51 am: |
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पळस, लताने हि कविता, शिवकल्याणराजा मधे गायली आहे. जितके सुंदर शब्द तितकीच सुंदर चाल आणि गायन आहे.
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Jo_s
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| Monday, May 12, 2008 - 3:21 am: |
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मित्रांनो सावरकरांची माहीती, लेखन व बरच काही इथे पहा. http://www.savarkar.org/
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Bee
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| Monday, May 12, 2008 - 5:32 am: |
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सुधिर, सावरकरांचे 'कमला' हे महाकाव्य कुठे वाचायला मिळेल काही कल्पना आहे का? 'समग्र सावरकर' मधे असेल का?
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Bee
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| Monday, May 12, 2008 - 5:35 am: |
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सुधिर, लिन्क सुरेख आहे. >>कारागृहात लेखनसाहित्य न मिळाल्यामुळे काट्याकुट्यांनी कारागृहाच्या भिंतींवर सुमारे दहा सहस्त्र ओळींचे काव्य कोरून लिहिणारे आणि ते सहबंदिवानांकडून मुखोद्गत करवून घेऊन प्रसिद्ध करविणारे जगातील आद्य कवी ..>> अजून अस्तित्त्वात आहेत का त्या ओळी कारागृहात?
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Palas
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| Monday, May 12, 2008 - 6:25 am: |
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धन्यवाद मंडळी दिनेश, मी जरुर ऐकेल लताने गयालेली कविता. बी त्या ओळी अजुनही कारागृहांच्या भिंती लिहिलेल्या आढळतील. त्या आता राष्ट्रीय स्मारक आहेत.
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Palas
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| Monday, May 12, 2008 - 6:37 am: |
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आत्मबल अनादि मी अनंत मी, अवध्य मी भला मारिल रिपु जगतिं असा कवण जन्मला अट्टाहास करित जईं धर्मधारणीं मृत्युसीच गाठ घालु मी घुसे रणीं अग्नि जाळि मजसी ना खड्ग छेदितो भिउनि मला भ्याड मृत्यु पळत सूटतो खुळा रिपू । तया स्वयें मृत्युच्याचि भीतिने भिववु मजसि ये लोटि हिंस्र सिंहाच्या पंजरी मला नम्र दाससम चाटिल तो पदांगुला कल्लोळीं ज्वालांच्या फेकिशी जरी हटुनि भंवति रचिल शीत सुप्रभावली आण तुझ्या तोफांना क्रूर सैंन्य तें यंत्र तंत्र शस्र अस्र आग ओकते हलाहल । त्रिनेत्र तो मी तुम्हांसि तैसाची गिळुनि जिरवितो
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