Malhar
| |
| Wednesday, December 28, 2005 - 12:32 pm: |
| 
|
खन्देशात पानवर्च्या एका किडिच्या प्रकाराला ३४;चावळ्३४; म्हणतात,..... काहि वेगला अर्थ आहे का
|
Bee
| |
| Thursday, December 29, 2005 - 2:51 am: |
| 
|
मल्हार असू शकेल.. वर्हाडात पण एक शब्द आहे चावळ चिवळ करणे किंवा चादळ चिदळ करणे. सहसा एखादे धान्य वा भाजी निवडताना जर कुणी काहीच न करता फ़क्त ह्यातले त्यात नि त्यातले ह्यात करून निवडलेले कचर्यात करत असेल तर त्याला चावळ चिवळ किंवा चादळ चिदळ म्हणतात. लहान मुले वरण पोळीचा काला खाताना त्याशी खेळतात त्यालाही चावळ चिवळ करणे असेच म्हणतात. पण नाधोंच्या कवितेत हा शब्दार्थ बसत नाही.
|
Nitu_teen
| |
| Friday, January 20, 2006 - 3:31 pm: |
| 
|
पक्ष्यांचे लक्ष थवे गगनाला पंख नवे वार्यावर गंधभार भरलेले ओचे झाडांमधुन लदबदले घन वाजतगाजत ये थेंब अमृताचे...
|
Nitu_teen
| |
| Friday, January 20, 2006 - 3:40 pm: |
| 
|
आंब्याची आमराई पिकून झाली सडा सांगते भाऊराया बहिणीले गाडी धाडा बहिणीले भाऊ एकतरी वो असावा थकल्या जीवाला एका रातीचा विसावा.
|
Mahanoranchi Bhangu de kathinya maze he kavita kunala mahit aahe ka? aaslys please sanga
|
Bee
| |
| Saturday, January 21, 2006 - 7:59 am: |
| 
|
अजित, भंगू दे काठिण्य माझे ही कविता बा. सि. मर्ढेकरांची आहे. त्यांच्या बीबी वर लिहिली आहे. तिथे जावून वाचा.
|
Jayavi
| |
| Saturday, January 21, 2006 - 12:40 pm: |
| 
|
नितिन, अरे थोडंसं चुकलं पक्ष्यांचे लक्ष थवे गगनाला पंख नवे वार्यावर गंधभार भरलेले ओचे झाडांवर लदबदले बहर कांचनाचे घन वाजत गाजत ये थेंब अमृताचे घन वाजत गाजत ये थेंब अमृताचे
|
Aavli
| |
| Wednesday, May 10, 2006 - 8:25 am: |
| 
|
VALAN VAATETIL ZAADAT HIRVE CHHAND VAHATYA NIRZRACHE GUTLE BHAV BANDH PLS POST THIS POEM ON HERE
|
Iravati
| |
| Thursday, May 18, 2006 - 3:21 pm: |
| 
|

|
Iravati
| |
| Thursday, May 18, 2006 - 3:23 pm: |
| 
|

|
Iravati
| |
| Thursday, May 18, 2006 - 3:24 pm: |
| 
|

|