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Mankya
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| Friday, April 20, 2007 - 8:37 am: |
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जखमा किती सुगंधी, झाल्यात काळजाला केलेत वार ज्याने तो मोगरा असावा ... वाह ! सुंदर ! खूपच छान शेर Share केलास Music.. धन्यवाद ! माणिक !
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Vaatsaru
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| Friday, April 20, 2007 - 11:33 am: |
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नचिकेत मनःपूर्वक अभिनंदन, सुरेख गझल वैभव स्वतःच्या कामातून वेळ काढून हा उपक्रम यशस्वीपणे तडीला नेल्या बद्दल तुझे अभिनंदन आणि शेकडो आभार आता नव्या कार्यशाळेसाठी एकच विनंति प्रत्येक गज़लकाराने आपल्या गज़लेला एक नाव द्यावे आणि ती त्याच नावाने पोस्ट व्हावी म्हणजे कुणी कवीच्या नावामुळे स्तुती केली (किंवा टीका) असे छोटेसे का होइना गालबोट लागायला नको. गज़ल पोस्ट झाल्यावर तीन चार दिवसात कवीचे नाव यथावकाश पोस्ट करता येईल. बघा कस वाटतं
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Meenu
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| Friday, April 20, 2007 - 1:20 pm: |
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वाटसरु तुमची सुचना चांगली आहे. हा विचार मनात आलाच नाही नविन कार्यशाळा व्यवस्थापक याचा विचार करतीलच. पण खरं तर काही लोकांच्या मनात जो विचार आला ज्यानी गालबोट लागलस वाटतय तोही विचार मनाला क्षणभरही शिवुन गेला नाही. उलट दयाच आली त्या लोकांची की त्यांची धाव यापलिकडे जाऊ शकली नाही.
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Chinnu
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| Friday, April 20, 2007 - 1:31 pm: |
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म्युझिक, छान लिहिला अभिप्राय. मेघधारा अगदी अगदी. वाटसरुंची सुचना चांगली आहे.
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Zakasrao
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| Saturday, April 21, 2007 - 4:39 am: |
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गुरुजी एक विचारायच आहे. माझ्या पत्नीला मी नेहमीच मायबोलीविषयी सांगतो. त्यात ही गजल कार्यशाळा सुरु झाल्यानंतर तिला ह्याविषयी बोललो होतो. हे ती सर्व अनुभवु शकत नाही कारण माझ्या घरी नेट नाही. मी तिला काल रिजल्ट विषयी बोललो तर तिने मला ह्या गजल्स ची प्रिन्ट काढुन आणायला सांगितले आहे जेणेकरुन ती ह्या सर्व गोष्टींचा अनुभव घेइल. तिला गजल्स खुप आवडतात. आणि तीला त्यातल माझ्यापेक्षा जास्त कळत. मी तिला बाहेर नेटवर घेवुन गेलो होतो पण काही गजल्स दिसतात काही दिसत नाहित शिवाय निवांतपणे वाचता येत नाही त्यामुळे आस्वाद घेता येत नाही. तर जर कोणाची हरकत नसेल तर मी गजल्स ची प्रिंट घेवु का?
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Meenu
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| Saturday, April 21, 2007 - 1:31 pm: |
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झ अरे घे की प्रिंट बिनधास्त .. फक्त गज़लकाराचं नाव त्यावर लिही म्हणजे झालं ..
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वैभव आणि प्रसादच्या कार्यक्रमाची ई सकाळमधे आलेली छोटीशी झलक इथे बघायला मिळेल.
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Supermom
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| Friday, May 04, 2007 - 4:11 pm: |
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वैभव, कार्यशाळा क्रमांक दोन कधी सुरू होणार?
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Shyamli
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| Monday, May 07, 2007 - 3:02 pm: |
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वाह .. वा ..!! नचिकेत, अभिनंदन चीन्नुचा आढावा मस्त,माझ्या अजुन ब-याच गझल वाचायच्या राहील्या आहेत एकेक करुन वाचत्ये आता गुर्जी २ री कार्यशाळा कधी?
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Mankya
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| Friday, May 11, 2007 - 1:00 am: |
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वैभवा .. लवकर सुरू कर रे दुसरी कार्यशाळा ! आतुरतेने वाट पहतोय कार्यशाळेची ! माणिक !
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Niru_kul
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| Monday, May 14, 2007 - 5:42 am: |
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चाँदनी देखे अगर वो महज़बीं तालाबपर, ताबे-अक्से-रुखसे पानी फेर दे माहताबपर... [ त्या सौंदर्यवतीने तलावावर पसरलेलं हे अतिसुंदर चांदणं पाहिलं तर (तिचा मत्सर जागृत होऊन) ती स्वतःच्या सुंदर मुखाचे प्रतिबिंब (अक्स-ए-रुख) तलावात पाडून त्याच्या तेजोमयतेने (ताब) चंद्राच्या सौंदर्यावर पाणी फेरेल.] - ज़ौक देहलवी.
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Sparab
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| Monday, May 14, 2007 - 6:47 am: |
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गज़लेच्या शाळेत admission हवी आहे. कुठे aaply करायच. काय procedure आहे? क्रुपया कळवा. आभारी.
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Jayavi
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| Tuesday, May 15, 2007 - 4:17 am: |
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संजय, अरे मराठी गझल.कॉम वर जा.....तिथे सुरु आहे.
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