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  | Archive through April 21, 2008 | 20 | 04-21-08 2:31 pm |
Dakshina
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| Tuesday, April 22, 2008 - 4:35 am: |
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दिनेश....  आत्ता कळले.... (तरी मला वाटलंच होतं हे 'चार शब्द' आड येतीलंच म्हणून... आम्ही आमच्या भावना सारख्या काय मोजून मापून ४ शब्दातच व्यक्त कराव्यात काय? हुश्श झाले एकदाचे.)
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दक्षिणा, तू तुझ्या शब्दात मांडता न येणार्या भावनांना 'टिंब टिंब.... टिंब टिंब' मध्ये व्यक्त कर..... ...... ...... .... अशा. म्हणजे वाचणार्यालाही काहीतरी अथांग, गूढ आशय असल्यासारखं वाटतं.
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'चार शब्द' म्हणजे काय हे कुणी मज पामरास सांगेल काय? एक वेंधळेपणा- आमंत्रणपत्रिकेचा draft लिहून देतांना लिहिलं "आपला आहेर हाच आमचा आशीर्वाद!"
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Uday123
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| Tuesday, April 22, 2008 - 5:31 pm: |
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योगेश: तुम्ही स्वत:ला पामर नका समजु हो. केवळ दोन शब्दांची पोस्ट स्विकारल्या जात नाही (बघा अनुभव घेऊन) म्हणुन 'चार शब्द', मग लोकं काही तरी करुन दोनाचे चार करतात.
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Dakshina
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| Wednesday, April 23, 2008 - 5:04 am: |
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अहो जी. डी. मी तशी टिंब बिंब लिहीली तर लोकं मला शिव्या दिल्या म्हणून मारायला धावतील. इथे आधीच काय कमी (शाब्दीक) युद्ध होतात?
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Ashbaby
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| Wednesday, April 23, 2008 - 7:18 am: |
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लहानपणी केलेला एक मुर्खपणा साधारण २०-२५ वर्षांपुर्वी माझ्या वडीलांचे पेटी (हार्मोनियम) बनवण्याच्या फ़िल्ड मध्ये चांगले नाव होते. त्यामुळे अनेक शास्त्रिय गायक आणि संगितकारांशी त्यांचा चांगला परिचय होता. घरी कधितरी ते सांगत आज कोण भेटला वगैरे ते. एके रविवारी दुपारी जेवल्यावर आम्ही सगळे टीपी करत होतो तर अचानक ते म्हणाले, अरे मला पुल देशपांड्यांची पेटिची ऑर्डर होती आणि काल ते स्वत्:च पेटी न्यायला आले होते. आम्ही सगळे उडालोच. म्हटले आम्हाला का नाही सांग़ितले, आम्हिही आलो असतो दुकानात पुल ना पहायला. तर ते म्हणाले, मलाही माहित नव्हते ते स्वत्: येणार ते. तुमच्यासाठी म्हणून त्यांची सही घेतलिय मात्र. पॅंटिच्या खिशात दहाची नोट आहे त्यावर घेतलिय. आयत्यावेळी कागदच सापडेना. हे ऐकल्यावर मी मटकन खालीच बसले. सकाळीच त्यांच्या खिशातली एकमेव दहाची नोट देउन मी ब्रेड आणला होता. लगेच सगळे धावलो दुकानात, पण ती नोट थोडीच राहणार एवढा वेळ? दुकानदाराने कोणा दुस-याला दिली होती. बरेच दिवस हळहळलो आम्ही आणि मी शिव्या ऐकल्या भावंडांच्या. साधना
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Kedar123
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| Thursday, April 24, 2008 - 5:30 am: |
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हा वेंधळे पणा आठवीतल्या आठवणीतला आठवीच्या इंग्रजी पुस्तकात ' बीऊटी द बीस्ट' म्हणून धडा होता. त्या धड्यासंदर्भात एकदा 'चेन्ज द स्पीच फ्रॉम डायरेक्ट टू इन्डायरेक्ट' संदर्भात एक वाक्य होते ते मी वाचले: "बीऊटी वील यु मॅरी मी?" "....." "बीऊटी वील यु मॅरी मी?" "....." बाई हसू आवरत म्हणाल्या " अरे गाढवा 'सेड द बीस्ट' असे तरी म्हण " अख्खा वर्ग तासाची बेल होईपर्यंत हसत होता. (तेंव्हा पासून 'हे' गाढव ' तो' प्रश्न अजून पर्यंत कोणात्याही बीऊटीला विचारू धजला नाही. हाय रे किस्मत .....)
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Anaghavn
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| Thursday, April 24, 2008 - 9:43 am: |
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ashbaby , तुझी १० रु. ची गोष्ट वाचत असताना मी एकिकदे "पु.लं. चं अपुर्वाई" ऐकत आहे. योगयोग. विषयांतरा बद्दल क्षमस्व.
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Shanky
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| Thursday, April 24, 2008 - 8:20 pm: |
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केदार तुला beauty and the beast म्हणायचे आहे काय?
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Sashal
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| Thursday, April 24, 2008 - 8:48 pm: |
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तेंव्हा पासून 'हे' गाढव ' तो' प्रश्न अजून पर्यंत कोणात्याही बीऊटीला विचारू धजला नाही. हाय रे किस्मत >>> अहो पण मुलींना तुम्ही 'बिऊटी' म्हणालात तर कोणी तुम्हाला वार्याला सुध्दा उभं करणार नाही ..
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Kedar123
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| Friday, April 25, 2008 - 7:51 am: |
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अरे शॅंकी हो हा ही एक वेंधळेपणाच सशल
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बिऊटी हे 'दिवटी' सारखं वाटतं.
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परवा आॅफीसला जाण्यासाठी निघालो. पार्किंग मधे आल्यावर समजले वाॅलेट राहिले आहे. परत घरात आलो. ते नेहमीच्या जागेवर दिसेना. म्हणून बायकोला फोन केला. ती म्हणाली "माहित नाही". मग एकदम क्लिक झाले. कालच्या ट्राऊजर मधुन ते काढलेच नव्हते. मग वाॅशिंग मशीन मधे मधून ट्राऊजर काढली आणि त्यातून वाॅलेट. गच्च ओल्या झालेल्या वाॅलेट मधून एक एक वस्तू काढून डायनिंग टेबल वर वाळत घातल्या. नशिबाने ड्रायविंग लायसन्स प्लास्टिक च्या पाकिटात होते म्हणून कोरडे राहिले. ते आणि क्रेडिट कार्ड घेऊन निघालो संध्याकाळी परत आल्यावर बायको माझ्याकडे बघत अर्धा तास हसत होती
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Dakshina
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| Thursday, August 28, 2008 - 8:04 am: |
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माझा कालचा वेंधळेपणा, काल माया मेमसाब ची CD प्लेअर मध्ये टाकली. आणि पहात बसलो. आणि चक्क एकाच CD त सिनेमा संपला? ते कसं काय? मग लक्षात आलं की डायरेक्ट डिस्क नं. २ पाहीली.. मग परत नं. १ ची CD लावून सिनेमा रिव्हर्स मध्ये पाहीला.. 
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Jadoo
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| Monday, October 27, 2008 - 8:12 pm: |
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कालच भारतातुन परत आले. निघण्यापुर्वि नेहेमि सारखे चितळेंच्या दुकानात चक्कर टाकली बाकरवडि न बाकिचे दिवळिसाठि पदार्थ आणण्यासाठि. शनिपारच्या दुकानात दिवाळिमुळे भयानक गर्दि होति. बाकरवडिचे ८ पाव किलो चे Pack सान्गितले तिथल्या माणसाने ते टोकन वर ते टाकले. नंतर mix मिठाइचे ३ pack घेतले वेगवेगळ्या मिठाइ घालुन. शेवटि cashier कडे टोकन देवुन payment केले आणि घरि आले. सहजच आई ने विचारले बाकरवडि चा भाव काय ते ते बघण्यासठि bill पहिले..बघितले तर काय २ किलो च्या बाकरवडि ऐवजि ४ किलो बाकरवाडि चे पैसे घेतलेले. Mix मिठाई मधे सुद्धा काहितरि वेगळ्या मिठाइ चा जास्त भाव लावलेला. ४ वाजता airport साठि निघायचे होते त्यामुळे पाषाणहुन पुन्हा bus घेवुन शानिपार ला परत जाणे सुद्धा शक्य नव्हते. मला पहिल्यांदा हा अनुभव आला चितळेंच्या दुकानात. माझाच वेन्धळेपण नडला..मीच आधि पहिले असते bill तर हे ५००-६०० रुपये जास्तिचे दिले नसते. बरे त्यांच्या दुकानातल्या टोकन वर कळत हि नाहि कि किति charge लावत आहेत. परत गेले असते तरि कोणि विश्वास ठेवला असता कि मी ८ pack घेतले कि १६???
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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